भारतीय-आर्य भाषा और हिंदी | Bhartiya-arya Bhasha Aur Hindi

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Bhartiya-arya Bhasha Aur Hindi by डॉ० सुनीतिकुमार चाटुजर्या - Dr. Suneetikumar Chatujryaa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ भारतीय-यूरोपीय तथा भारतीय-आय भाषाएँ इत्यादि, तथा ब्राहुई ); “०४77० ऑस्ट्रिक या दक्षिण-देशीय” (भारत की कोल या सुण्डा बोलियाँ, खासी, मोन्‌, रूमेर, निकोबारी ओर अन्य 2ए४प०- 1$518130 दक्षिण-एशियाई भाषाएँ ; साथ हग ^817006€8187 दक्षिण ঘা भाषाएँ, जैसे 10607८४० १ इन्दोनेसी--मालइ, सुन्दाबी, यवद्धोपी, बाल्ली, सुलबेसी, विसय एवं तगालोग आदि भाषाएँ; र्थधभाध्भं॥० मेल! नेस)-- फीजीद्वीपी; और 20150499 पोलीनेसी--यथा, सामोश्चारई, ताहिती, माश्रोरी, मारक्वेसी , हवायिद्वीपी ); 8०7८० बासटू-कुल ( मध्य एवं दक्षिण- अफ्रीका की स्वाहिली, लुगाण्डा, कांगो भाषाएँ, सेचुआना एवं हूलू इत्यादि); 5042गं० सुदानी ( पश्चिम अफ्रीका की योरुबा, गाँ, अशान्ती, मन्दिद्ञो इत्यादि )। इनके अतिरिक्त उत्तरी, मध्य एवं दक्षिणी अश्रमरीका में बोली जाने वाली अनेक श्रमरीकी भाषा-कुल की भाषाएँ हैं, जिन सबका उल्लेख करना कठिन है | इनमें से कुछ के बोलने वाले कई लाख की संख्या में हैं और उनका सम्बन्ध बड़ी प्रोढ़ संस्कृतियों से है। फिर भी उपयु क्‍त सब भाषाएँ भारत-यूरोपीय कुल की भाषाओं से सभी जगह पराजित होती रही हैं, লা उन पर भा० यू० कुल को भाषाओं की विभिन्न रूपों में अमिट छाप पड़ती रही है| उनमें से एक भाषा अंप्रेज्ञी तो देश या राष्ट्र आदि की सारी सीमाओं को तोड़कर सब भाषाओं से अधिक विश्व-भाषा का-सा रूप धारण कर रही है, ओर विश्व-संस्कृति के प्रसार का एक श्रद्वितीय माध्यम बन रही है । विश्व के भिन्न-भिन्न भागों में कई-एक ऐसे भी हैं, जो भारत-यूरोपीय भाषाओं से बिलकुल अपरिचित थे और या तो बसे हुए ही न थे, या अ्रपनी निज की अलग भाषा बोलते थे-वे सभी श्रव भारत-यूरोपीय भाषा के उत्तरोत्तर वृद्धिगत प्रसार के केन्द्र हो रहे हैं। भारत स्वयं इन्हीं में से एक उदाहरण है। लगभग ४९०० वषं पूवं जव भारतीय-यूरोपीय भाषा-कुल ने श्रपनी दि्ग्विजय-यात्रा आरम्भ को थी, तब सबसे पहले उसके साम्राज्य में मिलने वाले विज्ित देशों में भारत एक था । वेदिकः; प्राचीन फारसी, श्रोर श्रवेस्ता; मीक; गोयिक तथा अन्य जमन; लेटिन; प्राचीन श्राइरिश तथा अन्य केल्ट बोलियों; तथा स्लाव एवं बाल्टिक भाषाओं; आरसी नियन; 'हित्ती? (7101०); एवं 'तुखारी! (70४81॥8- 1180) भाषाओं के मूल उत्स-स्वरूप आद्य-सारतीय-यूरोपीय भाषा श्रवि- भक्त रूप से एक जन-समुदाय द्वारा बोली जाती थी । उन्हें भाषा-तत्त्वविदों ने +“विरोस्‌ (शगा1०8)! नाम दिया है। 'विरोस! आ० भा० यू० भाषा का 'मनुष्य'- वाची शब्द है, और इसीसे संस्कृत का 'वीर', ल्वेटिंन का ' उदर्‌ (पथ, पय),




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