बाँसरी बज रही | Bansari Baj Rahi

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : बाँसरी बज रही  - Bansari Baj Rahi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जगदीश त्रिगुणायत - Jagdish Trigunaayat

Add Infomation AboutJagdish Trigunaayat

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पृष्ठभूमि विश्व-नृतत्त्वशारत्न में लोकवार्त्ता इतिहास के राजसिंहासन पर जन-देवता के बैठ जाने के बाद मी विज्ञान ने जितनी उसकी शव-परीक्षा की है, उतनी उसके जीवन की परीक्षा नहीं की । उतत्त्वशस्त्र के विद्वानों ने जन-जीवन के खण्डहर को बहुत खोदा, उसके गड़े मुर्दों को बहुत उखाड़ा, मानुषमिति के पेमानों से उसकी बहुत नाप-जोख की, उसके रक्त की रासायनिक परीक्षा की, उसकी ध्वनियों, भाषाओं और साँसों का तास के पत्तों की तरह वर्गीकरण किया ओर अपने शिविर के पर्दे उठा-उठाकर मनुष्य की लाश के रंगमंच से विद्या-विज्ञासी दशकों को अपने जादू के खेल दिखाते रहे | समाज ने चकित होकर इन खेलों को देखा, विस्मय-विमुग्ध होकर ताली बजाई और फिर सारे तमाशे जादूगरों की झोली में बन्द हो गये | वास्तव में, दृतत्त्वशासत्र की आत्मा अमी तक पुस्तकालयों, प्रयोगशालाओं , डाकबँगलों और शिविरों के तर-कोटर मे भूत के कलेजे की तरह बन्द रही | उसने लोक-जीवन की साँसों को छूकर और उसके संगीत में अपना स्वर मिलाकर चलने का प्रयास नहीं किया। सत्यं-शिवं-सुन्दरम्‌ की खोज की, ये विद्याएँ सरकारों की प्रेरणा से चलने लगीं तथा विशेषकर शासन की सुविधा के लिए नहीं, तो फिर विद्या-विल्लासी पाठकों के बुद्धि-विलास के लिए तटस्थ श्रौर नीरस श्रध्ययनः कौ सामग्री प्रस्तुत करने लगी | इसीलिए, लोक-जीवन के कलात्मक ओर सरस पक्ष क्री ओर उतना ध्यान नहीं दिया गया। विश्वास और प्रेरणा के जिन रेशमी हिंडोलों पर लोक-जीवन भूलता है ओर मान्यता के जिन सावन-धनों की छाँव में जीवन की कजरी गाता है, उनसे जन- विज्ञान के विद्वान्‌ बहुधा अनजान रहे | उन हिंडोलों पर बेठकर उन्होंने उस आनन्द को नहीं समझा और' उन गीतों के स्वर में स्वर मिलाकर लोक-जीवन की धड़कनों को पहचानने का प्रयत्न नहीं किया | - यों तों लोकवार्त्ताओ्रों के अध्ययन की नींव १८१२ ईसवी में ही 'जैकब ग्रिमः नामक ए.क जमन-विद्वान्‌ ने डाल दी थी और यूरोप के सभी देशों में इस अध्ययन के लिए समितियाँ बन गई थीं, ऐण्ड्रयू लेंग, ग्राएड एलेन, मेक्समूलर, हबट स्पेन्सर, वेस्टर माक, ओर गोमे जैसे विद्वानों ने महत्त्वपूण काम किये, तथा जे० जी० फ्रेजर ने अपनी वह प्रसिद्ध पुस्तक गोल्डेन-बाउ' बारह जिल्दों में प्रस्तुत की, जो लोकवार्त्ता-शास्त्र की बाइबिल समभी जाती है। फिर मी, नशास्त्र समाजशास्त्र, भाषाशास्त्र, इतिहास, पुरातत्त्व-जैसे अन्य शास्त्रों की तुलना में लोक-साहित्य के अध्ययन का विकास यूरोप मी श्रमी तकृ




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now