ब्रजभाषा व्याकरण | Brajbhaksha Vyakaran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० ब्रजभाषा व्याकरण हुआ है | हिन्दी साहित्य' में आकर ब्रज!” शब्द पहले पहल मथुरा के चारों ओर के प्रदेश के अथ में मिलता है किन्तु इस बँदेश की भाषा के अ्रथ में यह शब्द हिन्दी साहित्य में मी बहुत बाद को प्रयुक्त हुआ है। कदाचित्‌ भिखारीदास कृत काव्यनिणंय ( सं° १८०३ ) में “ब्रजमाषा? शब्द पहले पहल आया है, जैसे भाषा जजमाषा रुचिर ( काव्य० अ० १, छु० १४ ), या बजमाएः हेतु हु ब्रजबास ही न अनुमानों ( काव्य० आअ० १ छ० १६ )। प्राचीन हिन्दी कवियों ने केवल माषा शब्द समकालीन साहित्यिक देशभाषा ब्रजभाषा या अवधी आदि के लिये प्रयुक्त किया है, जैसे का भाषा का संस्कृत प्रेम चाधि सोच ( दोहावली, दो° ५७२ ); ताही ते यह कथा यथामति मादा कीनी ( नन्ददास कृत रासपचाध्यायी, श्र १ पं ४०) | इसी माघानाम के कारण उदू लेखक ब्रजमाषा को “লাভা? ক ক पुकारते ये | काव्य की भाषा होद्धेके कारण राजस्थान में ब्रजमाषा पिंगल” कहलाई । १ जैसे, सो एक समय श्रीआचायेजी महाम्रभू श्रडेल ते जज को पावधारे । “-चौरासोवार्ता, सरदास की वार्ता, म्संग १। २--भाषा? ( संस्कृत धातु “ भाष्‌ ? बोलना ) शब्द का इस अर्थ में प्रयोग अपने देश मेँ बहुत प्राचीन काल से होता रहा है 1 कदाचित्‌ यास्क छत निरुक्त (१, ४, ५) में पहली बार यह शब्द इस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। बहुत समय तक वैदिक संस्कृत से मेद करने के लिये लोकिक संस्कृत “ साषा ? कहलाती थी। बाद को लोकिक संस्कृत पे मेद करने के लिये प्राइत तथा अपअंश और फिर प्राकृत तथा अपभ्रंरा से भेद दिखलाने के लिये भाधुनिकं श्रायैमाषाये “माषाः नाम से पुकारी ग । “भाषा? शब्द वास्तव मे समकालीन बोली जाने वाली भाषा के अथु. मे्नरावर प्रयुक्त हुआ है।




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