हीरक जयंती ग्रंथ | Hirak Jayanti Granth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५ ) जीवन परयत समा की सक्रिय सेवा करते रहे । इस चिमूर्तिं ने समा का पालन-पोषण अपनी संतान के समान किया तथा अनेक कठिनाइयो से इसे उबारा | इसीढिये ये तीनों सभा के संस्थापक ही नहीं, पाठक ओर पोपक भी हैं । इसी कारण समा के संस्थापक होने का श्रेय इस त्रिमूर्ति को ही प्राप्त है । २--राजभाषा तथा राजलिपि (१ ) संयुक्त पदेश के न्यायालय मे नागरी नागरी-प्रचार के उद्देश्य से ही इस सभा की स्थापना की गई थी ओर प्रथम वर्ष से ही इसके प्रत्येक पक्ष पर सभा ने ध्यान देना आरंभ कर दिया था। सन्‌ १८३७ में अँग्रेजी सरकार ने फारसी को स्वंसाधारण के लिये दुरूह मानकर देशी भाषा जारी करने की आज्ञा दी जिसके फलस्वरूप बंगाल में बंगला, उड़ीसा में ओंड़िया, गुजरात में गुजराती और महाराष्ट्र में मराठी में काम होने छुगा | संयुक्तप्रांत, विहार और मध्य-प्रदेशमें “हिंदुस्तानी! जारी की गई। परंतु उस समय अँग्रेज हाकिमों को अदालती अम्छों ने अपनी सुविधा ओर स्वार्थ-सिद्धि के लिये यह समझा दिया कि उदू द्यी हिंदुस्तानी है मौर इस प्रकार इन प्रांतों में उर्दू अदाछती भाषा हो गई | प्रयत्न करने पर बिहार और मध्य प्रदेश की सरकारों ने सन्‌ १८८१ में इस श्रम को समझा और अपने यहाँ उर्दू के स्थान पर हिंदी प्रचलित की, पर संयुक्त प्रांत की सरकार ने इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया | नागरी-प्रचार के अन्य कार्यो के साथ सभा का ध्यान इस ओर भी गया आर उसने इसके लिये उद्योग आरंभ कर दिया। सन्‌ १८८२ में प्रांतीय बोर्ड आव्‌ रेवेन्यू का ध्यान इस वात की ओर आक्ृष्ठ किया गया था कि सन्‌ १८७५ और १८८१ के क्रमशः १९ वें ओर १२ वें विधानों के अनुसार (समन? आदि हिंदी और उदूं दोनों में मरे जाने चाहिएँ | दो वर्ष तक इसका कोई उत्तर नहीं मिला । अतः प्रांतीय सरकार के पास निवेदनंपत्र भेजा गया । सन्‌ १८६ के नवंबर मास ( सं० १९५१ ) में प्रांतीय गवर्नर काशी आने वाले थे। समा ने उन्हें एक अभिनंदन-पत्र देना निश्चित किया, जिसमें हिंदी भाषा के साथ न्याय करने ओर सभा की उद्देश्य-पूर्ति में सहायता करने की प्रार्थना की गई थी। किंतु किन्हीं कारणों से उनका आगमन नहीं हो सका, अतएव अभिनंदन-पत्र उनके पास डाक से भेज दियां गया । गवनर की ओर से जो उत्तर मिला था उसका आशय था कि-- “गवनर महादेय ने अमिनंदनपत्र रुचिपू्वक पढ़ा | इसमें जिस मुख्य प्रश्न की चर्चा की गई है, अर्थात्‌ अदालती भाषा उदू की जगह हिंदी कर दी जाय, उसपर गवर्नर महोदय अपनी कोई संमति अमी प्रकट नहीं कर सकते | फिर भी वे यह अवश्य स्वीकार करते हैं कि सभा की प्राथना ध्यानपूवक विचार करने योग्य है ओर वे भविष्य में समुचित अवसर पर उसपर अवश्य विचार करेंगे |! | इन्हीं दिनों रोमन लिपि को दफ्तर की लिपि बनाने का भी कुछ प्रयत्न आरंभ हुआ था। इसपर सभा ने अपने ६ भाद्रपद, सं१९५२ ( २५ अगस्त; १८९५ ) के निश्वयानुसार नागरील्पि ओर रोमन अक्षरों के विषय में एक पुस्तिका तेयार करके अँग्रेजी में प्रकाशित की और सरकारी पदाधिकारियों तथा जनता में




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