सम्पूर्ण पत्रकारिता | Sampurn Patrakarita
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
304
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पत्रकारिता पृष्ठभूमि, जन्म जौर बिकास
धर यह कहा जाय कि पत्रकारिता की जड़ उतनी ही पुरानी है जितनी मानव-
सभ्यता, तो शायद कुछ लोग चौंक पड़ेंगे: किन्तु जरा गहराई से विचार
किया जाय तो ऐसा कहना गलत नहीं मालुम पड़ेगा | यह तो सभी मानेंगे
कि धर्म, दर्शन, साहित्य, कला, संस्कृति आदि का विकास अन्नातक नहीं
शुरू हो गया | उनका सम्बन्ध सुदूर अतीत से रहा । हाँ, यह बात दूसरी है कि किसकी
ड सुदूर बतीत में कितनी है । हर वस्तु की एक पृष्ठभूमि होती है, एक पूर्बाधार
जरूर होता है। अत: समाचारपत्रों तथा पत्चकारिता की भी एक पृष्ठभूमि है, एक
पूर्वाधार है। इनका सबसे पुराता आधार है 'सनुष्य की क्ुछ-भ-कुछ जानते रहते को
सहज इच्छा! । यह 'कुछ-१-कुछ' ही समाचार है। 'सम|चार' शब्द भी कोई तया नहीं,
है! और उक्त इच्छा भी नयी नहीं है | इस प्रकार यह मान लेना होगा कि समाचारपत्नों,
वी नीव वस्तुतः उतनी ही पुरानी है जितनी समाचार” जानते की इच्छा ।
आदिमं कालं मे, जव मनुष्य का जीवन सामूद्धिक था, लोग टोलियों में रहते
थे। ये टोलियाँ केवल आखेट करने के लिए नहीं, बल्कि यह जानते के लिए भी कि
'बया आस-पास सतुष्यों की और टोलियाँ भी रहती हैं', एक स्थान से दूसरे स्थान घूमा
ग्रिती थीं । उस समय किसी टोली के लिए यह जानना ही सबसे बड़ा समाचार था
कि दूसरी टोलीं किधर रहती है” । एक टोली की दूसरी ठोली के विरुद्ध कुछ युद्ध-
सावना होते के कारण भी जानकारी प्राप्त करने की यहू इच्छा उत्तरोत्तर बलबती
होती रही और उसके साथ कुछ सूझबूझ भी पैदा होती गयी। इसके बाद मानव-
पष्यता के चरण आगे बढ़ने पर जब पारिवारिक जीवन! के साथ श््राम्यं जवन प्रारम्भ
आतो लोग यह् जानने के लिए उत्सुक रहने लगे कि “पड़ोस के भाँव में क्या हो रहा
है, लोग कैसे रह रहे हैं, खेती कैसे करते हैं, उनके पास मवेणी कितने दव ^ 2
फिर अपने राजा या सरदार और दूसरे राजाओं था सरदारों तथा प्रदेशों के बारे में---
उनके घन तथा उनको सेना के बारे मैं--जानने की इच्छा बढी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...