खड़ीबोली का लोक-साहित्य | Khadhi Boli Ka Lok Sahitya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : खड़ीबोली का लोक-साहित्य  - Khadhi Boli Ka Lok Sahitya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सत्या गुप्त - Satya Gupta

Add Infomation AboutSatya Gupta

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( जौ ) ३. सूरज भवारा--कन्या नित्य नहाकर एक खोटा जर सूरज को चढाती है । ४. दातन कन्था--चार बजे (ब्राह्यमुहृतं मे) उठ कर दातन करके तब बोलती है और ऐसा ही साल भर नियमत হী ই ५. कौड़ी गहला--एक छोटा सा घर ( चॉदी का ) बनाकर और एक पुतली चाँदी की बनाकर ससुराल भेजी जाती है । कन्या प्रतिदिन एक कौडी या पैसा डालती थी और साल के बाद वह ससुराल को भेज दिया जाता था । ६. चिडिया चुगाई --कुछ दूर मे धरती लीप कर उस पर बाजरा बखेर कर चिडिया चुगाई जाती है ओर नन्द के छितर वर्षान्तं मे इजार ओच्ी चिडिया चृगाने की निशानी मेजी जाती है । ७. फूफस के थुआ देना--निम्न पद्म कह कर बहू फूफस को गुड की भेली देती है--- ससुरे बहन बलस कौ कुजा । मेरे रेखे भट्टी कौ थआ ॥ ८. सास की रंसाई--कडी बात कट्‌ कर सासू को रुष्ट करना । ९. सास्‌ निमाई--सास्‌ को जिमाकर प्रसन्न करना । १०. ससुर जिमाईइं --ससुर के कन्धे पर दुशाका डाक कर मेवा भर देते है और दो चार रुपये डाल देते है--- ससुर मेरा वाखा भोला । भर मेवा का ज्ञोला। ११ ससुर को पिन्नी देना--'दमकन पिन्नी चमकन सुसरा' यह्‌ कहां जाता है । १२ केले पिया मिसरी, मेरे मनते कभी न बिसरी । १३ जेठ जिठानो का बहा-- आयत यायत धरी मिठाई । जेठ जिठानी হি मिल खाई । १४ भगन का बहा-- चार कचोडी ऊप्पर जीरा । कदी ना बन्‌ मोरो का कीरा ॥ १५ जेठ का बेटा-- चार कचोरी ऊपर दही । जेठ के बेटे ने चाची कटी ॥




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now