महारानी कुमारदेवी | Maharani Kumardevi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
308
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१. कौमुदो-महोत्सव
चन्द्रगुप्त लगातार इधर-से-उधर घूम रहा था। बहुत सोचने के बाद भी
वह किसी निणंय पर पहुँच नहीं पाता था। कभी सोचता, सुन्दर वर्मा से
मिलकर उसके मन की थाह ले ओर कभी सोचता कि उससे बिना मिले ही
चलता बने | कभी उसे खयाल आता कि पाठलीपुत्र की श्रेष्ठी-परिषद् से,
जो केवल नाम की ही परिषद् थी, जाकर मिले। कभी सोचता कि सेना को
साथ लेकर प्रासाद को घेर ले और पाटलीपुत्र पर अधिकार कर ले ।
क्या करे ? जो करना है अभी ही कर गुजरे या प्रतीक्षा करे! यही बातें
वह बार-बार सोचता था, परन्तु किसी निश्चय पर पहुँच नहीं पा रहा था |
एक बात तो बिलकुल स्पष्ट थी | उसमें किसी प्रकार के सोच-विचार
आर असमंजस के लिए जरा भी गुंजाइश नहीं थी। इतना तो वह स्वयं मी
अच्छी तरह समझ गया था कि कल्याण वर्मा के जन्म के बाद पाटलीपुत्र में
उसके लिए कोई स्थान नहीं रह गया था । लेकिन पाठलीपुत्र को छोड़कर
वह जा मी नहीं सकता था । एक नही, दो शक्तिशाली राजा पारलीपुत्र पर
अपना अधिकार स्थापित करने के लिए तैयार खड़े थे | उनमें एक मारशिव'
भवनीग सामान्य योद्धा नहीं था | गंगा-यमुना के मध्यव्तीं प्रदेश को उसी
ने कुशान यवनों के पंजे से मुक्त किया और उनके ज्षत्रपों को मझुरा के पार
तक मार भगायां था | उधर विन्ध्य-विदिशा का प्रवरसेन भी उतना ही
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