गध - लेखक रामचंद्र शुक्ल | Gadh-Lekhak Ramchandra Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3.1 से नागरी प्रचारिणी पत्रिका मे प्रकाशित हुआ। इसी प्रकार 1{32251- 1०165 की 17 वां ॥ नामक पुस्तक का अनुवाद 'मेगास्थनीज का भा रतवर्षीय विवरण के नाम से, सर टी० माधवराय के ०07 पव115 का अनुवाद राज्य प्रबन्ध शिक्षा के नाम से, एण 11४0108 27त 1120 प्ट का अनुवाद आदर्श जीवन' के नाम समे, ९104016 2 € 01४68 का अनुवाद विश्वप्रपच' के नाम से प्रकाशित हुआ। इसी प्रकार बाबू राधाकृष्णदास का जीवन चरित्र, बुद्धचरित्र, शशांक श्रादि कई अनूदित ग्रन्थ प्रकाशित हुए । नागरी प्रचारिणी पत्रिका के सम्पादन कायेने तथा हिन्दू विश्व विद्यालय मे श्रध्यापन कार्य ने उनकी भावयित्री प्रतिभा को उत्तेजित किया और वे निबन्ध रचना की श्रोर सोत्साह प्रवृत्त हुए । अपने समृद्ध बुद्धि-वल से वे गम्भीर से गम्भी रतम साहित्यिक, मनोवैज्ञानिक विषयों पर निबन्ध लिखने लगे और भावयित्री प्रतिभा के पूर्ण विकसित हो जाने पर वे काव्य- मीमासक आचाय के रूप मे हमारे सामने प्रकट हुए । उनके कविता क्‍या है, काव्य में रहस्यवाद' काव्य मे प्राकृतिक दृश्य', 'भारतेन्दु समीक्षा, 'उपन्यास' भाषा का विस्तार श्रादि अनेक निबन्ध विचार-वीथी ग्रौर चिन्तामणि नामक सम्रहो मे प्रकारित हुए । तुलसी ग्रन्थावली को भूमिका , जायसी ग्रन्थावली की भूमिका, सूरदास” “ भ्रमरगीतसार' श्रादि समा- लोचनाएं भी उनकी उत्कृष्ट कोटि की भावयित्री प्रतिभा के प्रमाण स्वरूप कही जा सकती है। उक्त निबन्धों में, समालोचनात्मक भूमिकाओं मे, शुक्ल जी के काव्य सम्बन्धी भ्रनेक सिद्धान्त, मान्यताएँ व धारणाएँ विन्यस्त हुई है। काव्य निरूपण की दृष्टि से उनके विभिन्‍न लेखों का “रस मीमांसा नामक संग्रह विशेष उल्लेखनीय है। इस प्रकार काव्य विषयो पर अपने गम्भीर अ्नुशीलन के आधार पर रचनाए प्रस्तुत करके शुक्ल जी ने अपने जीवन की संचित विभूति हिन्दी साहित्य को प्रदानकर दी। श्री रामचन्द्र शुक्ल का यह जीवन हिन्दी साहित्य के विकास, प्रचार व विस्तार मे एक शुभ वरदान माना जा सकता है।




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