आधुनिक हिन्दी काव्य में भक्ति चेतना का स्वरूप निराला के विशेष सन्दर्भ में | Aadhunik Hindi Kavya Mein Bhakti Chetna Ka Swaroop Nirala Ke Vishesh Sandarbh Mein

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Aadhunik Hindi Kavya Mein Bhakti Chetna Ka Swaroop Nirala Ke Vishesh Sandarbh Mein by राजेन्द्र कुमार शर्मा - Rajendra Kumar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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:. 8 ' अर्थार्थिता भक्ति। नारद ने भी गौणी भक्ति को स्थापित किया, और उसके ग्यारह प्रकार बताये। गुण माहत्म्यासक्ति, रूपासव्ति, पूजसक्ति, स्मरणसव्ति, दास्यसक्ति. ताख्य- सवित, वात्सल्यसक्त, कान्तासक्ति, आत्म ॒निवंदन सक्ति, तमन्यता सक्ति, परम वरहा सक्ति। श्रीमद्भागवत्‌ में भक्ति के नौ प्रकारौ की चचौ कौ गयी। श्रवणं कीतेनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्‌। अचैनं वन्दनं दास्यं सख्यं आत्मानिवेदनम्‌। 1 ‡ इसके अतिरिक्त भक्ति के अन्य प्रकार से भी भेद भागवत में मिलते है। इनके अनुसार भक्ति तीन प्रकार की बतायी गयी - सात्विकी राजसी ओर तामसी“ भागवत्‌ में वणित भव्ति के ये तीनों प्रकार गौणी भक्ति के ही अन्तर्गत आते है। इन वगीकरणों के अतिरिक्त भी भागवत ने भव्ति के कई ओर प्रकारो की चचौ की गयी है। जैसे निष्काम भवतः अहैतुकी भक्तिः नैष्ठिकी भक्ति अकिंचन भवतिः निरपेक्ष भविति? आदि। ` भविति रसामृतरसिंधु मेँ रूप गोस्वामी ने भव्ति के जो भेद-विभेद प्रस्तुत किया है, उनके अनुसार भवित के तीन प्रकार सिद्ध होते है - साधन भव्ति, भावभविति ओर प्रमाभक्ति। 1“ साधन भक्तिकेदोभेद है - वैधी भविति, रागानुगा भक्ति।:‡ जो भक्ति शास्र के विधि निषेधो का अनुपालन करती हुई विविध विधानं से संपादित की जाती है उसे वैधी भक्ति कहते है। रागात्मिका भक्ति वह है जो रस का अनुभव प्रदान करती हं। वैधी भक्ति वह धारा है, जो अपने दोनो किनारों से बंधी होती है, पर रागानुगा वह बाढ़ है जो किनारों का बंधन स्वीकार नहीं करती। रागात्मिका भक्ति को भी रूप गोस्वामी जी ने दो भागों में विभाजित किया। कामानुगा और सम्बन्धानुगा। तन्‍्मयी या भवदे भक्ति: साञत्र रागात्मिकोदिता। सा कामरूपा सम्बन्धरूपा चेति भवेद्द्विधा।+“ যা জে উজ রিনি এ मकः सास হজ সন আনি তি উজ এ সি, অঅ জি রা অর ক থর यय এস চি উল পে এ ও টা থা উট এস এ জী ১৩ সস ই ৬ 1 भागवत्‌ ~ 7/5/23 7. भागवत्‌ - 1/2/18 हे भागवत्‌ - ३/29/10 8. भागवत्‌ - 5/18/12 3 भागवत्‌ -- ३/29/9 9. भागवत्‌ - 11/20/35 4. भागवत्‌ - 3/29/8 10. सा भवितः साधनभावः प्रेमाचेति त्रिधोदिता) 5 भागवत्‌ - 5/18/21 भव्ति रसामृत सिन्धु - 2/1 6. भागवत्‌ - 1/2/18 11. वैधी रागानुगा चेतिसा द्विधासाधनामिधा 12. भक्ति रसामृत सिंधु - 2/272, 273 भक्ति रसामृत सिंधु 2/5




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