मुलशङ्कर याज्ञिक की कृतियों का आलोचनात्मक अध्ययन | Moolshankar Yaagik Ki Kritiyon Ka Alochnaatmak Adyyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
293
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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तथा नगरों का महत्त्वपूर्ण कौन प्रस्तुत कक्यि गये हैं। आरयदिश को रक्षा सुरक्षा करने
वाले अनेक राणव्धों का इीतहास देने तथा उत्तको सामाजिक उपयोगगता का ज्ञान
कराने आीद के प्रसंग में निरवय हो णन सम्रह में राष्ट्रिपता के भावों को प्रदीप्त
करने को दुष्ट से प्रस्तुत किये गये है।
ब्रहमपुराण में ब्रह्माण्ड कान के प्रसंग में जम्बूढ्लीप का कौन करते हुए
कहा गया है कक सागर के उत्तर दशा की ओर और 1हमागीर से दक्षिण दिशा
की ओर भारतवर की 1स्थीत है इनमें जन्म तेने वाले भारतीय हं-
उत्तरेण सथदरत्य †हपाद्ेषएयैव द |
वर तब्मारत नाम भारतो ख सन्ततः।। |
इसी प्रकार पुराणों में अनेक स्थानों पर राष्ट्रियता के भाव प्राप्त
होते है।
तेस्कृत के उपणीत्य कारव्यों में भो राषष्ट्रियता का व्शन [मिलता
है। प्रत्येक विवकीसत एवं विकासशील देश में कुछ एसे ग्रान्थरत्न हुआ करते हं भनसमे
उत देश ठी वंस्करीत, सभ्यता श्वं धाक म्याद् आद क मतन होता हे ।प्से
ही अन्ध राष्ट्र के अगरूह्य नोवन-प्नीत होति है। इन ग्रन्थो प सष्ट्र कौ सारी त्यक
युधा के भी शनेक आलम्बनं होते ह| नहा से स्वलष्ट्र अनुगा मो रसमिद्र साहत्यकार
अपनी संवेदना के ही अनु्ार कथावस्तु का अपहरण कर अपनी योग्यता के बलपर
राष्ट्र के वीरतर स्वं धम के गौरव का वविक्ञात करता है ।
পর বিজ জজ नि জরি ০০০ 1 1 ॥ আস [1 ০০ পাত বউ চু शकन এক ০ क ক রশ জে কমতে ০ নন ০০ शष ০০০০ হট
| * ब्रहमपु राणा 19/1
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