अकेले कंठ की पुकार | Akele Kanth Ki Pukaar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
76
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)च्छद द ९, = & आया সপ षु च कु द द्ध ऋ ब द ७ ४
$ १५ ৯
रास्ते में मिल गए जो,
शुष्क मन की रेत पर ही खिल गए जो,
साँस के पथ से समाए प्राण में जो,
स्वर बने-
औ' हो गए इस ज़िदगी के त्राण-से जो-
वही मनचाहे, सजीले राग
उठते जाग :
प्रात: के पवन में सुन खगो के बोल,
या फिर सूँघकर खुशब गुलाबों की बड़ी अनमोल ।
चाँद-तारों की बिदा के आँसुओं की सजल বলা...
नील नभ पर सिर्फ़ हे सूरज अकेला
और घरती पर अगिनती मनुज
अलसाए, उनींदे, ऊंघते, सोते, बदलते करवटें, या
उठे, बेठे, टहलते -ज्यों नींद के बादल फटें,
या कर रहे होते प्रतीक्षा
सामने के पम्प से भरकर घड़े लड़के हटे ।
उस तरफ़ के किसी धर से धुंआ उठता . . .
चीखते बच्चे, सुठछगती लकड़ियाँ, बरतन खड़कते ।
मिलों के भोंपू चिघरते ।
खलबली मचती छतों-खपरल-छप्पर के तले ।
रेख, मोटर, टाम, इक्के बाँधकर ताँता चले ।
जागते सब . . .
जागता बह मन कि जो मोहित हुआ-सा
उन्नीस
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