गद्यचिंतामणि | Gadhchintamani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
39 MB
कुल पष्ठ :
528
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना
सम्पादन सामग्री
गयचिन्तामणिकां सम्पादन नीचे लिखी प्रतियोके आधारपर हुआ दै--
१. क --यह् प्रति श्रीमान् पं० के° भुजवरो शस्त्री भूडविद्रीके सस्प्रयत्नसे श्रवणवेलगोकलाके
सरस्वती भवनपे प्रास हृई थी । यह कन्नड छिपिमे ताड़पत्रोपर लिखी हुई है । इसमें १४ )८ १६ इंचके ९७
पत्र हैँ । प्रतिपत्रसे ८ पंक्तियाँ और प्रति पंक्तिमें ६६ के लगभग अक्षर हैं। दशा अच्छी है, अक्षर सुवाच्य है,
बीच-बीचमें टिप्पण भी दिये हुए हैं । अन्तके २ इलोक इस प्रतिमें नहीं है। अन्तिम लेख इस' प्रकार है
“परिधाविसम्बत्सरे माघमासे प्रथम्पक्षे प्रलिपत्तिथौ रविवासरे बहुगुछापुरे छलिखितम् ।*
२. ख--यह प्रति मी श्री पं० के० भुजवली शास्त्री मूडबिद्रीके सत्प्रथत्तसे प्राच्यविद्यामन्दिर
मैयूरसे प्राप्त हुई थी। यह कन्नड किपिमें कागजपर छिखी हुईं है। इसमें १२०८ ७ इंचके १३१ पृ है ।
प्रति पृष्ठपर ३३ पंक्तियाँ और प्रतिपंक्तिमे २७ के लगभग अक्षर हैं । रजिस्टरके रूपसें पक्की जिलद है १८९९
विसम्बरको লহঘিন श्ञास्त्रीके द्वारा लिखी गयी है |
३. ग--यह प्रति श्री पं० के० सुजबली शास्त्री मूडबिद्रीके सत्प्रयल्ससे प्राच्यविद्यामन्दिर मेसूरसे
प्राप्त हुई थी । यह कागजपर आस्थ्र लिपिमें लिखी हुई है। इसमें १२३८ ७३ इंचके १३० पृष्ठ है ॥ प्रत्येके
पृष्ठमें २० पंक्तियाँ और प्रत्येक पंक्तिमें २०-२१ अक्षर है । अन्तिम लेख इस प्रकार है---
“जय सम्बत्सर आरिवन बहुल १४ तिरुवल्टूर कीर राषवाचार्येण लिखितम् ।'
दशा अच्छी है, रजिष्टरनुमा पक्की जिल्द है ।
४. शच --यह प्रति भी उक्त शास्त्रीजीके सौजन्यसे श्रवणवेलगोलाके सरस्वतोभवनसे प्राप्त हुई
थौ । यह् कब्नड लिपिमें ताड़पत्रोपर लिखी हुईं है । इसमें १२१८ १३ हइचके २१४ पत्र ह । दशा अत्यन्त
जीर्ण है, अधिकांश स्थाही निकल जानेसे लिपि अवाच्य हो गयी है अतः इसका पूरा उपयोग नहीं हो क्षका
है । छेखन-कालका पता नहीं चूका । अन्तमें इस प्रकार छेख है--
वासुपृज्यायनम& कनकभद्राय चसः ।*
५, 'म--यह प्रति ठी० एस० कुप्पूस्वामी-दारा सम्पादित एवं प्रकाशित मुद्रित मूछ प्रति हैं।
इसका सम्पादत कुप्प्स्वामोने ७ प्राचीन प्रतियोंके आधारपर किया था अतः शुद्ध हैं । इसके दो संस्करण छप
चुके है, पहले संस्करणकी अपेक्षा दूसरे संस्करणमे प्रेसकी असावधानीसे कुछ पाठ छूट गये है। यथा ३२
पृष्टे भुवन शब्दके वाद “विवरव्यापिना--' आदि ७-८ पंक्तियाँ छूट गयी हैं।
दुःखकी बात है कि हमें गध्यविम्तामणिको लागरी लिपिमें लिखी हुई ক শী प्रति नहीं मिक्त सकी 1
आशा और कनन््नड किपिकी उक्त चार प्रतियोसे पाठमेदोंका संकलस श्री पं० देवरभटूजी, बाराणसीने किया
है श्रीमान प० अमुृतराऊछजो जैन मी खम पृण सहयोग दिया है अत में इनका
८ आमारी ह में स्वय जाप्न और कन्नट्ठ लिपिका ज्ञासता नहों अत उक्त प्रतिगोत्रि स्वय्मेव छाम
User Reviews
No Reviews | Add Yours...