गद्यचिंतामणि | Gadhchintamani

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Gadhchintamani by पत्रालाल जैन - Patralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना सम्पादन सामग्री गयचिन्तामणिकां सम्पादन नीचे लिखी प्रतियोके आधारपर हुआ दै-- १. क --यह्‌ प्रति श्रीमान्‌ पं० के° भुजवरो शस्त्री भूडविद्रीके सस्प्रयत्नसे श्रवणवेलगोकलाके सरस्वती भवनपे प्रास हृई थी । यह कन्नड छिपिमे ताड़पत्रोपर लिखी हुई है । इसमें १४ )८ १६ इंचके ९७ पत्र हैँ । प्रतिपत्रसे ८ पंक्तियाँ और प्रति पंक्तिमें ६६ के लगभग अक्षर हैं। दशा अच्छी है, अक्षर सुवाच्य है, बीच-बीचमें टिप्पण भी दिये हुए हैं । अन्तके २ इलोक इस प्रतिमें नहीं है। अन्तिम लेख इस' प्रकार है “परिधाविसम्बत्सरे माघमासे प्रथम्पक्षे प्रलिपत्तिथौ रविवासरे बहुगुछापुरे छलिखितम्‌ ।* २. ख--यह प्रति मी श्री पं० के० भुजवली शास्त्री मूडबिद्रीके सत्प्रथत्तसे प्राच्यविद्यामन्दिर मैयूरसे प्राप्त हुई थी। यह कन्नड किपिमें कागजपर छिखी हुईं है। इसमें १२०८ ७ इंचके १३१ पृ है । प्रति पृष्ठपर ३३ पंक्तियाँ और प्रतिपंक्तिमे २७ के लगभग अक्षर हैं । रजिस्टरके रूपसें पक्की जिलद है १८९९ विसम्बरको লহঘিন श्ञास्त्रीके द्वारा लिखी गयी है | ३. ग--यह प्रति श्री पं० के० सुजबली शास्त्री मूडबिद्रीके सत्प्रयल्ससे प्राच्यविद्यामन्दिर मेसूरसे प्राप्त हुई थी । यह कागजपर आस्थ्र लिपिमें लिखी हुई है। इसमें १२३८ ७३ इंचके १३० पृष्ठ है ॥ प्रत्येके पृष्ठमें २० पंक्तियाँ और प्रत्येक पंक्तिमें २०-२१ अक्षर है । अन्तिम लेख इस प्रकार है--- “जय सम्बत्सर आरिवन बहुल १४ तिरुवल्टूर कीर राषवाचार्येण लिखितम्‌ ।' दशा अच्छी है, रजिष्टरनुमा पक्‍की जिल्द है । ४. शच --यह प्रति भी उक्त शास्त्रीजीके सौजन्यसे श्रवणवेलगोलाके सरस्वतोभवनसे प्राप्त हुई थौ । यह्‌ कब्नड लिपिमें ताड़पत्रोपर लिखी हुईं है । इसमें १२१८ १३ हइचके २१४ पत्र ह । दशा अत्यन्त जीर्ण है, अधिकांश स्थाही निकल जानेसे लिपि अवाच्य हो गयी है अतः इसका पूरा उपयोग नहीं हो क्षका है । छेखन-कालका पता नहीं चूका । अन्तमें इस प्रकार छेख है-- वासुपृज्यायनम& कनकभद्राय चसः ।* ५, 'म--यह प्रति ठी० एस० कुप्पूस्वामी-दारा सम्पादित एवं प्रकाशित मुद्रित मूछ प्रति हैं। इसका सम्पादत कुप्प्स्वामोने ७ प्राचीन प्रतियोंके आधारपर किया था अतः शुद्ध हैं । इसके दो संस्करण छप चुके है, पहले संस्करणकी अपेक्षा दूसरे संस्करणमे प्रेसकी असावधानीसे कुछ पाठ छूट गये है। यथा ३२ पृष्टे भुवन शब्दके वाद “विवरव्यापिना--' आदि ७-८ पंक्तियाँ छूट गयी हैं। दुःखकी बात है कि हमें गध्यविम्तामणिको लागरी लिपिमें लिखी हुई ক শী प्रति नहीं मिक्त सकी 1 आशा और कनन्‍्नड किपिकी उक्त चार प्रतियोसे पाठमेदोंका संकलस श्री पं० देवरभटूजी, बाराणसीने किया है श्रीमान प० अमुृतराऊछजो जैन मी खम पृण सहयोग दिया है अत में इनका ८ आमारी ह में स्वय जाप्न और कन्‍नट्ठ लिपिका ज्ञासता नहों अत उक्त प्रतिगोत्रि स्वय्मेव छाम




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