भारत माता | Bharat Mata
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
70
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारत माता ५
[त्वम् अग्ने] तर हे अग्नि)! [चूमि] दीप्तियोके साथ पैदा होता
है, [त्वम् आबुशुक्षणिः] तू अपने तेजसे हमपर चमकता ই; [त्वम्
अद्भ्य:| तू जलोंके अंदरसे पैदा होता है, [त्वम् अश्मनः परि] तू
पत्थरके चारों ओर पैदा होता है, [त्वं वनेभ्य, त्वम् ओषधीभ्य:| तू
वनोंसे और तू पृथ्वीके पौधोंसे पैदा होता है। त्वं नृणां नृपते] तू
हे मनुष्यके ओर मानवजातिके संरक्षक! [शुचिः जायसे] जन्मसे
पवित्र है ।
(२)
तवाग्ने होत्रं तव पोत्रमृत्वियं तव नेष्टं त्वमग्निदृतायतः ।
तव प्रशास्त्रं त्वमध्वरीयसि ब्रह्मा चासि गृहपतिश्च नो दसे ॥
[तव अग्ने होत्रम] तेरे ही है अग्नि! आह्वान और हवि हैः
[तव पोत्रम् ऋत्वियम| तेरा ही पवित्रीकरण और यज्ञ-विधान है, [तव
नेष्ट्रम] तेरा ही शोधन हं, [त्वम् अग्निद् ऋतायतः] तू सत्यके अन्वेष्टा-
के लिये अन्न्याहर्तां ह । [तव प्रचास्व्रम्] प्रशासन तेरा ही है, [त्वम्
अध्वरीयसि| तू यात्राविधि बनता है व्रह्मा च असि] त शब्दका
=
ऋत्विज् हं [गृहपतिः च नः दमे] ओौर हमारे घरमे गृहपति है ।
(२)
त्वमग्न इन्द्रौ वृषभः सतामसि त्वं विष्णुरुरुगायो नमस्यः
त्वं ब्रह्मा रयिविद् ब्रह्मणस्पते त्वं विधर्तः सचसे पुरन्ध्या ॥
[त्वम् अग्ने इन्द्र: असि] हे अग्नि! तू इन्द्र है जो कि [वृषभः
सताम् असि] सब सत्ताधारियोंका बैल है, [त्वं विष्णु: उरुगाय:] तू
विशा गतिवालाः विष्णु है, [नसस्यः] नमस्कारद्रारा पूजनीय है।
[ब्रह्मणस्पते] एं शब्दके अधिपति ! [त्वं ब्रह्मा] तू ब्रह्मा है [रयिवित्]
या तू यात्रा-कर्मका पुरोहित हे,
या, विशाल रूपसे गाया हुआ।
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