दो आब | Do Aab

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Do Aab by रामशेर बहादुर सिंह - Rameshwar Bahadur Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৫ হী জান “पड़े खेद की बात है कि हम छोगों के लिये हिन्दी मेँ भमी तक इस ढंग की कोई पुस्तक नहीं छिखी गयी निसमें हमारी प्राचीन उन्नति, अर्वाचीन अवनति का वर्णन भी हो ओर भविष्यत्‌ के ढिये प्रोत्साहन भी |... देशवत्सहू सज्जनों को यह नुटि बहुत रही है। ऐसे महानुभावों में भीमान्‌ राणा रामपाल सिंहजी सी० आई० ई० महोदय हैं| “कोई वर्ष हुए मैंने पूर्व दर्शन” नाम की एक तुकबन्दी लिखी थी | उस समय चित्र में जाया था कि हो सका तो कभी इसे पत्छवित करने की चेष्टा भी करूगा | इसके कुछ ही दिनों बाद उक्त राजा साइबर का एक कृपापत्र मुझे मिला जिपमें श्रीमान्‌ ने मोलाना हाली के 'मुसदस” को लक्ष्य करके एक कविता-पुस्तक हिन्दुओं के ढिये छिखने का मुझसे अनुग्रह- पूवक अनुरोध शिया |. 'भारत-मारतीः सन्‌ १६१३ में प्रकाशित हुई । वास्तव में 'मारत मारती” की प्रेरक शक्तियों के पीछे एक युग विशेष की संस्क्ृतियाँ थीं। उस समय की परिक्षिधतियों का जन्‍म उस आन्दोलन से हुआ था जिसको दो-तीन पीढियाँ बीत चुकी थीं। जब एक यर राजा राममोहन राय ( १७०२-१८३३ ई० ), ईंश्वरचन्द्र विद्यासागर ( १८२०-६१ ), केशव- चन्द्र सेन ( १८३८-८४ ), आदि समाक-सुधार-सम्बन्धी प्रचार-कार्य कर रहे ये, और दूसरी ओर बगाछ, महाराष्ट्र पज्ाब और पश्चिमी युक्तप्रास्त में रामकष्ण परमहस ( १८३६-८६ ) स्वामी विवेकानन्द ( १८६२-१६०२ ), स्वामी दयानन्द सरस्वती ( १८३४-८३ ) और स्वामी रामतीर्थ का धार्मिक आध्यात्मिक पुन ब्त्यानवादी प्रचार बढ रहा था ।”” सस्तु, उन्नीखवीं शताब्दी में प्रचलित धमम-सम्बन्धी बहुत से नये इश्टिकोण मेथिकीशरणजी के समय तक हिन्दू जनता के सश्कार में घुछ मिर् गये ये | इस प्रकार भारत भारती” के प्रणेता को जिस युग का वातावरण मिला, वह था पजान ओर पश्चिमी उुक्तप्रान्त में आय समानी प्रचार कार्य के उत्तराद का | हिन्दुओं में चारों ओर वेदिक युग ओर “यायं सम्बताः की गुज दुनायी पड़ती थी! बहुत-कुछ अलुस्वृति का 'सनातनी” पक्ष भी छिए हुएं एक प्रगतिशील समन्वय के रूप में भारत मारती! उसी की भाजुक प्रतिध्वनि है |




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