बिहार का साहित्य (पहला भाग) | Bihar Ka Sahitya (Pehla Bhaag)

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Bihar Ka Sahitya (Pehla Bhaag) by बाबू शिवनन्दन सहाय - Babu Shivnandan Sahay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पर भी हिन्दी की सम्पत्ति हे. क्योकि मेधिनः हिन्दी भापरान्तर्गत एक- बोली है । “करतल कमल नेन ढर नीर। न चतय समरन कुन्तल चीर ॥ तञ पथ देरि हेरि चित नहि धीर । खुमरि पुरुष नहा दगध शरीर ॥ करि का माधव साधव प्रान। विरहि युवति माग दरसन दान ॥ जल मध कमल गगन मध सूर । आतर चन कुमुद कत दुर ॥ गगन गरज मघ सिखर मयूर । कत जन जानसि नेह कत दूर ॥ লহ विद्यापति विपरित मान! राधा -वचन लजायल कान्‌ ॥ भटा इसे कोन हिन्दी नहीं कहेगा ? आप यह न समभे कि केवल ब्रज भाषा की ही कविता बिहार में होती थी। खड़ी बोली के कवि भी यहां हुए है । यही नहीं, खड़ी बोली की कविता को खड़ा करने सें ब्रिहार ने प्रा उद्योग किया है। इसका श्रेय मुज्ञफ्करपुर के स्वर्ग वासी बाबू अग्रोध्याप्रसाद जी खत्री को है। बात्र साहब खड़ी बोली की कविता के बड़े भारी हिमायती थे। आपने ही पहलेपहऊ खड़ी बोली के पद्मों का संग्रह सन्‌ १८८८ ई७ में किया था। इसका सम्पादन फ्रेडरिक पिनकोंट ५




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