द्रव्य | Dravya

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Dravya by श्रीधर मिश्र - Shreedhar Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिच्छिद्‌ एक [ऋ ^ द्रव्योत्पत्ति . विषय प्रवेश क्‍ प्रत्येक मनुष्य जक्मकाल से ही अनेक वस्तुओं का प्रयोग करने लगता दै । धीरे-धीरे अवस्था के साथ उपयोग में आने वाली इन वस्तुओं की मात्रा और संख्या इतनी अधिक होती जाती है ओर हम उनके प्रयोग में इतने लिप्त हो जाते हें कि हमें उनके विषय में कभी सोचने का अवसर भी नहीं मिल पातो । वास्तव में यह वस्तुयें हमारे जीवन का अनिवाय ओर आवश्यक अंग बन जाती ' हैं और तत्पश्चातू उनका महत्व इतना अधिक बढ जाता है. कि फिर उनके विषय में हमारी जिज्ञासा कभी जाम्रत ही नहीं होती। द्रव्य भी इसी प्रकार की एक वस्तु है, जिसके प्रयोग से हम सभी, बच्चे से बूढ़े तक अली भांति परिचित हैं | स्वाभाविक रूप से प्रत्येक व्यक्ति द्रम पाने के लिए प्रयत्नशील रहता है. क्योंकि उसकी आवश्यकत




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