कम्पनी के काले कारनामे अर्थात भारतीय व्यापर और उघोग-धंधों की बरबादी | Company Ke Kaale Karname Arthat Bhartiya Vyapar Aur Ughogh-Dhandhon Ki Barbadi

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Company Ke Kaale Karname Arthat Bhartiya Vyapar Aur Ughogh-Dhandhon Ki Barbadi by बलदेव प्रसाद गुप्त - Baldev Prasad Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंग्रेजों का बेरोक व्यापार १५ के लिए विलायत में बिकने के लिए, चोरी से आयें तो क्या आपके विचार में चोरी से में गाये जाने के कारण उन पर मंगाने का अधिक खर्च बैठने पर भी वे इस देश के सूती कपड़े को धका पहुँचा सकेंगे १९ उत्तर-«“मेरा ख्याल यह है कि वे बहुत अधिक धक्का पहुँचा- येंगे; और उन पर लगने वाली चुङ्गी के मुक्राविले उनको छिपा कर गाने का खच बहुत कम होने से अत्यधिक बचत होगी | > यह स्पष्ट है कि भारतीय अथशास्त्र की दृष्टि से भारत में ऑगरेजों के मुक्तद्वार ब्यापार खोलने की नीति का समर्थन नहीं हो सकता था | भारत को अँगरेजी माल की आवश्यकता नहीं थी। एक अगरेजी विद्वान. डा० जानसन कौ उक्ति है कि “देशभक्ति बदमाशों का अन्तिम आश्रय है | उसी प्रकार लोकोपकार अमेन शोषकों का अन्तिम बहाना है । आधिक विचार नाकामयाब होने पर ऑँग्रेजों ने भारत के साथ अंग्रेजों का बेरोक व्यापार स्थापित करने की आवश्यकता सिद्ध करने के लिए. लोकोपकार के बहाने से काम लिया। पाल्यमिंठ की सेलेक्ट कमेटी ने यह भाव दिखलाया कि मुक्तद्वार व्यापार एक लोकोपकार का काय था, जिससे संसार के दूसरे देशों के सन्‍्मुख भारत के निवासी ऊँचे उठे और सम्य बने ! इस लिए खर टामस मुनरो से इस बात पर शपथ पूत्रक गवाही ली गई ; प्रश्न--“क्या आपने कभी इस पर विचार किया है कि पाश्चात्य जगत पर व्यापार का कया प्रभाव पड़ा है, इसने निरंकुश शासन को ढीला या निमल करने में क्या भाग लिया है योरप की प्रचलित रहन




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