नीतिशास्त्र | Neeti Shastra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नी तिरश्च स्वथ ~सीर असत्यका {रोध करता है| (उसकी नैतिक चेतना यहे जानना न कि उसेर्कीः न्‌रणाएँ ओऔर विचार कहातक ठीक है; वह इनका ण और स्पष्टीकरण, करना चाहती है; बोद्धिक विश्लेषण द्वारा গ অহ कर्मोको अपनाना चाहते † वह निःश्र यस्क समञ्चतेका प्रयास कर है ओर परमश्रो यके स्वरूपकरो समञ्चना चाहती & ¦ धदि इतिहासकी ओर दृष्टि करे तो यह स्पष्ट हो जायगा कि मनुष्ये मनमे जवं गम्भीरं विचारो तथा विवेचनार्ओका उदय हुभा तो सवं प्रथम नोति उसका ध्यान बाह्य जगतकी गुस्थियोको सुलश्चामेकी (र ओर गया। कुछ कार पश्चात्‌ उसने जीवनकों -------- व्यावहारं आचश्यकता्ओको सखुल्ञानेका . ग्रयास किया.। उसने सम्पूर्ण व्यक्तिको समझना वाहू चनक विभिन्न अंगाका अर्नन करनेपर वह इस परिणामपर पहुँचा দঃ द्विजीवी केवल पेट भर र--शारी रिक आवश्यकताओंकी पूत्तिसे दी--युखी नहीं रह सकता । उसकी सामाजिक चेतना ओर बौद्धिक आत्माने उसे कुरतव्य ओर . अधि कारका पाठ पढ़ाया) उस पढ़ाया” ) (उसकी पाशविक प्रवृत्तियॉँकी संयर्मित करके उनका 'उन्नयन किया । उसको,जबज॒का ध्येय जाननेके लिए प्रेरित किया |. यदी प्रणा नीति रास्वकी जष्- शो 2। इसी प्ररणाके कारण वह परम्परागत (भावनाओं, प्रचटनों ओर अम्यासेकोशम॒द्चना चाहता উই प्रचलित मान्य: इस ट्टे, वद्‌ बेद्धिक -प्रणाली. पक दारा प्रसेक. व्यक्तिके कत्तव्य-सकर्तव्यक - चिरय--कियाः जाता है। मनुष्यके लिए क्या उजित-है।-उसे-म्लनों और अम्यासोका कहाँतक अनुकरण करना चाहिये; उसे अपने स्व॒तन्त्र इच्छित कर्म द्वारा किस ध्येय- = अम সার करनी चाहिये जादि सव वाते नीतिशाख्कै दी अन्तर्गत आती मनुष्यकौ बुद्धिने सर्वा ध्येय (निःश्रेयस) को जाननेका तथा उसकी




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