गुरु गोविन्दसिंह और उनका काव्य | Guru Govindsingh Aur Unka Kavya

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Guru Govindsingh Aur Unka Kavya by प्रसित्री सहगल - Prasitri Sehgal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग्रथम अध्याय युग-परिस्थितियाँ इतिहास एक आलोक स्तम्भ है । कोई भी देश ओर जाति गौरवमय इतिहास के बिना निष्पाण समझी जाती है। अतीत के पर्यवेक्षण और भविष्य के आशामय चित्राकन करने में इतिहास ही सहायक होता है। इसी दृष्टि से साहित्य का भी महत्व कम नहीं ¦ वह युग का वाहक होने के साथ ही युग को परिवर्तित करने की सबल क्षमता भी रखता है। विभिन्न परिस्थितियों से प्रभावित होकर अधिकाशतः वह देश और समाज पर व्यापक प्रभाव डालता है। इसीलिये उसे समाज का दर्पण कहा जाता है। समय की मंदगति के साथ थिरकने की शक्ति और क्षमता के प्रभूत बल पर वह अपना रूप, आकार भी बदछता चलता है। यही कारण है कि साहित्य-सर्जक कवि ओर लेखक के रूप मे एक ओर देश और समाज से अनुप्राणित होता है और दूसरी ओर अपने व्यक्तित्व एवं तियो से तत्कालीन देश ौर समाज को नये संचि में ढालने का भी प्रयज्ञ करता है | उपर्युक्त इष्टयो से किंसी भी कवि या लेखक के विषय मे जानकारी प्राप्त करने के लिये तद्यगीन परिवेश का पर्यवेक्षण आवश्यक होता है। बाह्य हछूचरू ही चेतना की प्रसुत शक्तियों को जाणत एवं उत्तेजित करती है। मानव मध्तिष्क तत्कालीन परिस्थितियो के राजनीतिक; धार्मिक, सामाजिक ओर साहियिक स्वरूपो का समीचीन अध्ययन करके, प्रस्ुत समस्यामो के निदान खोजने के प्रयास करता है| सिक्खोके दसवे गुरु गोविन्द सिंह का व्यक्तित्व ओर कृतित्व भी तदूयुगीन परिवेश से न केवल निर्मित एवं प्रभावित है वरन्‌ उसमें नये मोड देने मे भी समर्थ हुआ है। अतएव इन परिस्थितियों का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है। राजनीतिक परिस्थिति सोलहवी शताब्दी में भारतवर्ष अनेक राजनीतिक इकाइयों में विभक्त हो चुका था । बेहरे से बिहार तक अफगान राज्य, पूर्वे भारत मे बंगाल और जौनपुर के राज्य, मध्यमारत में मालवा और गुजरात राज्य, पॉचो ही मुसलछमानी शासकों के अधीन ये) केवछ विजयनगर और चित्तोर ही हिन्दू शासन के नियंत्रण में थे। विजयनगर का राज्य कम शक्तिशाली नहीं था और चित्तीर का राणा सांगा शौर्य और वैभव में




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