राष्ट्र-निर्माण के व्यवहारिक सुझाव | Rashtra-Nirman Ke Vyavharik Sujhav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
94
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(द)
( ७ )
त्यागो ! स्य.शनं को तिज्ञांजलि दो । वेतन बृद्धि के लिये खम्मि
लित, संगरित भौर वैध रूप से माँग अधिकारियों के सामने
रक्खो, क्योकि यष्॒ समी भली भांति जानते है कि `भूके भजन
न दोइ गोपालां। वस्तुओं का मूल्य पंचगुना-छगुना बढ़ गया
है। रुपया अब ढाई आने की द्र रखता है। जिसे पहले ४०)
रुपये मिलते थे अब इसे २५०] रुपये ईमानदारी के साथ मिलने
चाहिये, और जिसे २०) रुपये मिलते थे उसे १००) रुपये
मासिक । इससे कम में शरीर और जीव की श्यति कुटुम्ब में
रखनी इस ज़माने में असम्भव हे। यार लोगों ने ज्वयं अपने
५० ०) रुपये के स्थान में पॉच हज़ार तक सुरक्षित रख लिये हैं ।
ओर भत्ता प्रथक | किन्तु बन्घुओ ख़बरदार ! तुम इनकी स्पर्धा
कदापि न करना | तुम्हें तो त्याग ओर तपस्याका ही अपना लक्ष्य
सामने रखना है । नहीं ते 'राष्ट्र-निर्माण? स्वप्न की ही बात रह
जायगी |
अतः क्या ते विद्यालय, क्या बाहर, क्या खेल का मेदान !
सर्वत्र एक ही घुन ओर एक ही लद्दय ! राष्ट्र-निमोण ! राष्ट्र-
निर्माण !! राष्ट्रनिसोण !! योजनाएँ सोचो ! रवयं उनका
परीक्षण करो! अधिकारियों के सामने रक्खो । जनता का
सरकार की सहायता के लिये प्रोत्साहित करो। काम्फ सों में
आन्दोलन करो । याद् रक्खो, देश के भावी शासक वे युवक
न होगे जो आज लेडी कुत्तो की मानिन्द् गन्द गालियों में मारे-
मारे घूमते देखे जा रहे हँ । देश का शासन कल उनके सुपुदं होगा
जो आज पूर्ण अनुशासन के साथ भक्ति-पूबक, योग्य गुरुओं के
चरणों में, अध्ययन करते हुए अपने शरीर, मास्तिष्क और
आत्मा को बल्निष्ठ बनाने का उत्कट प्रयत्न कर रहे होगे। उनका
उचित भ्रमार्ग-दर्शन तुम्हार हाथो में है । उन्हें संयम और अनु-
शाब्मन का परमायश्वक पाठ तुम्दारे सिवाय कोन पढ़ावेगा ?
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