हिंदी - काव्य और अरविन्द - दर्शन | Hindi Kavya Aur Arvind Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परंपरागत दाशंनिक प्रृष्ठभुसि ओर अरविन्द-दद्ंन पर उसका प्रभाव ५ ই देवयान तथा 'पितृयान' मार्गों का भी विस्तृत विचार वेद मे प्राप्त होता है । इसके अतिरिक्त ऋग्वेद के अन्तर्गत नीच कर्मो को करने वाले किस प्रकार वृक्ष, लतादि स्थावर-शरीरो को प्राप्त करते है, का विशदता के साथ उल्लेख मिलता है ३ । (६) भात्म-तत्व का विकास--वेदो के सहिता-भाग मे क्रम से पुथक्‌ आत्मा का उल्लेख नही प्राप्त होता । इससे सिद्ध होता है परमात्मा से भिन्न आत्मा के स्वरूपनिर्धारण की चेष्टा बाद मे हुईं। आत्मा की शोध के लिए जो भी प्रयत्न किए गये होगे, उनका मूलाधार व्यक्ति की दु ख निवृत्ति ही रही होगी९ । ब्रह्म व्यापारो मे जब जिज्ञासु को अपने दुख की निवृति का निदान न मिला होगा'ती उसने अपने आम्यतर की छान-बीन करनी आरम्भ की होगी और उसकी इस प्रकार की शोध का परिणाम आत्म-लाभ रहा* है। आत्मोपर्लव्धि के साथ-साथ उसके सभी प्रकार के दु खो की निवृत्ति भी हो गयी होगी * । यद्यपि जैसा कि ऊपर कहा गया है, वेदो के सहिता भाग मे जिज्ञासु भिन्न- भिन्न देवताओं की स्तुतियो के द्वारा उन देवताओं को (इन्द्र, वरूण, पुषन आदि) अपनी दु ख-निवृत्ति का कारण जान कर उन्हें ही आत्मा समझने लगे। वेदों के सहिता-भाग मे आत्मा के विषय मे इससे अधिकं विचार नही प्राप्त होता । किन्तु, वेदो के पश्चात्‌ ब्राह्मण-प्रन्थो मे भी यज्ञ-विधान की ही विशेष प्रतिष्ठा रही है और आत्मा के अन्वेषण की प्रगति प्राय गौण ही है । | ब | ब्राह्मण तथा आरण्यक (१) आत्मा का स्वरूप-जेसा कि ऊपर कहा गया है ब्राह्मण-ग्रन्थो मे आत्मा सम्बन्धी विचार अथवा अन्य दारनिक उपपत्तियो का अभाव ই | किन्तु ब्राह्मण-प्रन्थो की भांति वेद का अपना-अपना आरण्यक ग्रन्थ भी है । ये ग्रन्थ ब्राह्यण-ग्रन्थो के सहा- यक है ओौर ब्राह्मण-ग्रन्थो मे वणित यज्ञो के रहस्य का उद्घाटन करते है । इन ग्र मे दार्शनिक विचारणाओ का विशेष उल्लेख प्राप्त होता है । यही कारण है कि अनेक महत््वपूणं उपनिषद्‌ आरण्यक-ग्रन्थो के ही भाग है । जैसे एेतरेय उपनिषद्‌ 'ऐतरेय १-ऋग्वेद ३-३८-२, १-१६४-२० । २--ऋग्वेद, कु हु १ १ २-ऋग्वेद, ३-३८-२, १-१६४-२० ४--ऋ वेद, ३--५५--१५ ४--ऋणष्वेद, ७--र--३, ७--१०१--६/ ४७--१०२--२ | ६--हा० उमेश भिश्च, मारतीय रशन । (अ) डा० राधाकृष्णन, इंडियन फिलासफौ, वालूम १, पृष्ठ १६९ ।




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