कृष्णायन | Krishnayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
43 MB
कुल पष्ठ :
940
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)৫. जाकी
: : कृष्णायन |: जाय 4 अ ६ | भूमिका ५
का रूप धारण कर लिया । कृष्णएचरित का यह रूप हमें महाभारत में विशेष नहीं
` मिलता, परंतु हस्वंशपुराण, श्रीमद्धागवत, गीतमोचिन्द्, बिद्यापति पदावली और
. गौड़ीय वेष्णवों द्वारा! प्रभावित साहित्य में निरंतर विकसित होता हुआ दिखलायी
पड़ता है | हिन्दी का भक्ति तथा रीतिकाल का ब्रजमाषा साहित्य इस प्रवाह में
पड़करं ऐसा बहा कि उसके पाँव ही एथ्वीतल से उखड़' गये । गोपीकृष्ण और
राधाक्ृष्ण की संयोग-वियोग-लीलाओं के सामने महाभारत के राजनीतिश श्रीकृष्ण
के चरित्रों और उपदेशों की जनता को बिलकुल सुध न रही | यह अवश्य है कि
कृष्णचरित्र के इस नये रूप ने कवियों के ृदयों में अनमिनती कोमल कल्पनाओं
. का सृजन करिया, रसराज श्ज्ञार की अ्न्तत म अनुभूतियों का चित्रण करने के
. लिए उन्हें प्रेरित किया तथा भाषा के परिमार्जन और अलंकार विधान द्वारा
काव्य को मूषित करने में उन्होंने अपनी ओर से कुछु उठा न रक्खा | धर्मा-
चार्यों नें गोपीकृष्ण और राधाकृष्ण की भावना को लेकर एक नया दर्शनशासत्र
ही बना डाला जो अनेक सम्प्रदायों में उपनिषदों के समान गंभीर और रहस्य-
मय माना जाने लगा और जिसकी ध्वनि को लेकर कवियों ने अ्रपनी कल्पनाशं
के लिए नये-नये मार्ग दृढ़ निकाले'। _
इष्ण-चरित्र का चरम विकास हम वल्लभाचार्य के पुष्टि मार्म मे ब्रालमोपाल्ल
के रूप में पाते । इस भावना को काव्यमय रूप महाकविं सूरदास ने अपने
बाललीला-सम्बन्धी पदों में दिया है । यद्यपि इन चरित्रनायक के चरित्र का
यह एक अति सीमित अंग था तथापि साथ में ही इसमें एक व्यापक नित्य झाक-
भ॑ भी संनिहित था । इष्टदेव के सम्बन्ध मे बालगोपाल की माबना माहुकता
की दृष्टि से मनुष्य को ममता की साकार मूर्ति माता के कोमल हृदय फ मिकट-
तम पहुँचा देती है। असुर-संहारक कृष्ण राष्ट्र कौ कल्पना में एक बार फिर
बालक हो गये और उंनके' साथसाथ जनता का हृदय मी इस कल्पना के
लालन-पालन में व्यस्त हो गया | सूरसागर का बाललीला-सम्बन्धी अंश अपने
सौमित क्षेत्र में बहुत ही ऊँचा और साथ ही बहुत ही गहरा है, किन्तु यह भी
` कना पड़ेगर कि कष्ण चरित का यह एक ऐसा रूप है' जो ऐतिहासिकता से
शरोर वास्तविकता से हमें इतनी दूर ले जाता है कि हम एक प्रकार से नये
कांब्य॑मय काल्पनिक जगत में विचरण करने लगते हैं ।
अष्णायन में श्रीकृष्णचन्द्रजी का संपूर्ण चरित्र हिन्दी जनता के सामने
খন্মনজঃ काव्य के रूप में आ रहा है और फलस्वरूप इस महान् चरित्रनायकः
के आदंश तथा संदेश का सच्चा स्वरूप सर्वसाधारण को सुलभ हो सकेगा।
५
की रही भावना जैसी, प्रभु मूरतिं देखी तिन तैंसी”---यद्यपि- यह पंक्ति औराम-
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