कुंभनदास - जीवनी ,पद-संग्रह और भावार्थ | Kumbhandas - Jeewani, Pad-sangrah Aur Bhavarth

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Kumbhandas - Jeewani, Pad-sangrah Aur Bhavarth by वृजभूषण शर्मा - Vrajbhushan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ संगीत-कलादक्ष और भक्त कवि ऊे रूप में कुभनदास का परिचय सुना भौर उन्हें फतदपुर सीकरी के राजदरबार में बुरा লা | त्याग, विमनस्क्रता, भीर भौदासीन्य ने संगीत की स्वरलहरी का रूप धारण क्रिया, सन्नाद्‌ का सारा ऐश्वर्य प्रभाव-इस भक्त की व्याम एव मिमय ब्रत्तिफेभारो हतप्रभम भौर मूर्छित होकर रदं गया । सूकूस्थिति को लेकर वातां-प्रसग की रचना की गई । भस्तु. इस प्रकार चर्ता प्रसंगों में आनेवाले कई पद्‌ चार्वाभों छी प्राचीनता फी पुष्टि भी करते हैं, तो कहे पद वाता-प्रसगो की कलेवर की भभिव्नृद्धि। वारता- सम्बन्धी अध्ययन में इस पर विशेष दृष्टि देने की भावश्यकता है । जसा कि-वातोओ के त्रिविध सस्करण का निश्चय किया गया है-सबसे प्राचीन चौरासी वेष्णवं की धातो से १६९७ की लिखित प्राक्त होती है, जिसकी अष्टजाप-वातो का संस्करण इसी वर्ष कॉकरोली “विद्याविभाग' से प्रकाशित किया गया है। इस प्राचीन बातों भौर तदु'तरकालीन वाति मे कुभनदास के जिन पदों का उल्लेख मिछता है, उनका निर्देश करदेना यहा श्षप्रासगीक न द्ोगा ? क्षणशछाप के सभी कवियों के पदों की हृस प्रकार की सूची रक्त सस्करण में दी गई द्वे-यदहों केवल कुंभनदास के पदी का परिचय कराने के लिये स्राथ में दी गई प्रतीक भनुक्रमणिका में उन प्रतीकों को बड़े क्षक्षरों से छापा गया ই जिनका वार्ता-असमों से उल्लेख मिक्ता है । पर्दों का भावाथे-- प्रस्तुत प्रकाशन मै ‹ भथैयुग › फी यथाथता फो ध्यान म रखकर भार्थिक सयोग देनेवाले ऊर महानुभावो के भाग्रह को सार्थक करने के छिये ही गृडाथे पर्दोका सर भावाथे प्रकाशित करने का व्यर्थ सा प्रयत्न करना पढा है। कहां सक्तकवि, महानुभावी, पदुकार कुंभनदास के भावभरित गंभीर गेय भद * और कहाँ उनका नि सार भावाथ प्राकृतिक सुषुमा-सम्पन्न भाप्या- त्मिके जगत फी किसी सरस ऊज में स्वानन्दमरन होकर रस-साक्षास्कार करने वाछे गायक क गीतिमय कान्य का छोहलेखनी द्वारा गद्य में भथ लिखना सुझ जले क्षमघिक्कारी के लिये भशकक्‍य असंभव और अभपराध-सा है-पर विवशता है ।




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