इस्लाम धर्म की रूपरेखा | Islam Dharm Ki Rooprekha

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Samarpan  by महेश प्रसाद मौलवी - Mahesh Prasad Maulvi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ८ | बात से अबूतालिब का चित्त इतना द्रवित हुआ कि, वह अस्वो- कार न कर सके, ओर साथ ही मुहम्मद को भी लेकर शामः की ओर प्रस्थित हुए । इसी यात्रा मै बालक ने खीष्ट-तपोधेन बहेरा? का प्रथम दशन पाया । विवाह जन-प्रवाद है कि असाधारण प्रतिभाशाली महात्मा मुहम्मद आजीवन अक्षर-ज्ञान से रहित रहे । व्यवहार-चतुरता, ईमान- दारी आदि अनेक सद्गुणो के कारण, कुरैश-वंश की एक समृद्धि-शालिनी खी खदीजाः ने अपना गुमाश्ता बनाकर, २५ वषे की अवस्था मँ नवयुवक मुहम्मद से (शामः जने की प्राथना की । उन्होंने इसे स्वीकार कर, बड़ी योग्यतापूबंक अपने कर्तव्य का निवोह किया। इसके कुछ दिनों बाद “खदीजा' ने उनके साथ ब्याह करने की इच्छा प्रकट की | यद्यपि 'ख़दीजा' की अवस्था ४० वषे की थी ; उनके दो पति पहिले मर भी चुके थे ; किन्तु, उनके अनेक सद्गुणो के कारण महात्मा मुहम्मद ने इस प्राथना को स्वीकार कर लिया । तत्कारीन मूर्तियां हुब्ल', लात, मनात्‌', उज्ज़” आदि भिन्न भिन्न अनेक देव- प्रतिमाएँ, उस समय अरब के प्रत्येक क़बीले में लोगों की इष्ट थीं । हूत पुराने समय मे वहां मूर्तिपूजा न थी । अमरः नामक कावा के एक प्रधान पुजारी ने शाम” देश में सुना, कि इनकी आरा-




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