प्राचीन इतिहास संस्कृत एवं पुरातत्व विभाग इलाहाबाद विशव विद्यालय, इलाहाबाद | Social Changes As Depicted In The Astrological Textsof Ancient India - In Hindi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उत्तर वैदिक काल तक आते-आते आर्य और अनार्य का विरोध ओर द्विवर्ण का स्वरूप समाप्त सा हो गया हे। इसके स्थान पर चार्तुवर्णं का उल्लेख प्रारम्भ हो गया यद्यपि ऋग्वेद के पुरूषसूक्त मे चारो वर्षो का उल्लेख अवश्य हुआ हे, किन्तु उस वश की प्राचीनता उतनी नही है, जितनी ऋग्वेद के अन्य प्रारम्भिक ऋचाओ की। हिन्दू सामाजिक जीवन का आधार चतुर्वण व्यवस्था थी। यह वर्ण” और जाति! दोनो कहलाई जाती है | शुद्रो के विपरीत प्रथम तीन वर्ण द्विज या द्विजाति* कहे जाते थे क्योकि इस वर्ण के लोगो को उपनयन सस्कार, जौ कि दूसरा जन्म समझा जाता था, का अधिकार प्राप्त था, जो कि शूद्रो को प्राप्त नही था। हालाकि ब्राह्मणो को दूसरी जाति से प्रथक करने के लिए द्विज ओर द्विजाति का प्रयोग ब्राह्मणो के सन्दर्भ मे अधिक किया जाता था वर्णौ का विवरण सामान्यत समाज मे उनकी स्थिति को प्रकट करते हुए घटते हुए क्रममे किया जाता था| उस समय वर्णं व्यवस्था अत्यन्त कठोर थी | वराहमिहिर का जाति व्यवस्था का विवरण चरम सीमा तक पहुँच गया था। उन्होने क्रमश सफेद, लाल, पीले ओर काले रग को ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र से सम्बन्धित किया है | ब्रह्मा ने ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ओर शूद्र की उत्पत्ति की, जिनका रग क्रमश श्वेत, लोहित (लाल), पीत (पीला) ओर काला था वस्तुत श्वेतरग का परिचायक सत्वगुण था लाल रग का 5- अथर्ववेद 3 5 7, शब्व्रा०5 5 5 4 9, 64 4 13, 6- ना 19,700, 14 ০0০ 1 शा 10. शशश्वा 18, 18, ८ इषा 7, 1, 14% 2.4.616 8- १४ [४4 9. 1४23, ए20, 32,7176, 1539, शा 1४, उण्णा 4, जाज 13, शाता 1 [णा 5 , [शा 38. ध, 21.13 € 10- महाभारत, शान्तिपर्व, 188 5 ब्रह्मणाना तु सितोक्षत्रियाणा तु लोहित वैश्याना पीत को वर्ण शूद्रणाम सितस्यतया छा, र््




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