अपना पराया | Apna Paraya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
104
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अपना-पराया ७.
दीनू--मगर, अभी भिरजा साव के घर से सीक्र-कवाव दे
गया है कोई ।
रानी--अच्छा ! आज ज़माने पर कैसे याद आह मै“ मगर
तुम्हें तो जता देना था कि में अब*******
दीनू--( हँसकर ) भगविन हो गई !
र न्नी--नहीं-नहीं, यह कह ने की नहीं ০৪৬ ৩৬৩ तुम छोड़ो भी ००००० ०
अपने एक खत के साथ वापस कर दृगी।
युसुफ-- ( सामने आकर ) में तो हाथ बाँधे खड़ा ही हूँ--साथ
लिये जाऊं गा, कोई भुजायका न्ह |
रानी--अरे ! अभी तुम गये नहीं !
युसुफ--जी, जा ही रहा हँ--मेरा तो कोई काम नहीं अब | में
तो तुम्हारी आँखों के आँसू पर खिंच आया था,
नहीं तो 0००० कक
रानी--( आँखें उठाकर ) ऐसा क्यों कह रहे हो, मेंने तो कुछ
कहा नहीं ।
युसुफ--जी नहीं, बात यह है कि आपका चेहरा खिल उठा--
खुशी की लर है । मैने देख लिया-लाखों पाया ।
अब मेरी वैसी जरूरत न रही। ` ` |
रानी--भला यह भी कोई बात है ९
युसुफ--बन्दा परवर, यों आने के लिए तो आपके दर पर
दुनियाँ आती हे। हँसी पी के साथी तो बे-वुलाये भी
आसमान से बरस आते हैं बराबर, मगर कहीं, खुदा
न करे, आसमान सर पर फटा ओर उमड़ आये
तुम्हारी आँखों में आँसू तो फिर आये तो कोई उन्हें
अपनी आँखों में पिरोने'**“*“*“'जाने दीजिये, आप
फूलें-फलें ।
रानी--अच्छा भई, फिर कभी ++ उठ खड़ी होती है )
युसुफ--जी, जेसी मजी “खुदा हाफिज । ( युसुफ दूसरी ओर
मुड़ता है। एक अजब आवेश में लगता है गुनगुनाने भी )
“वो फिर वाद्। मिलने को करते हँ यानी, ( अभी कुछ दिनों
ओर जीवा पड़ेगा |” )
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