अपना पराया | Apna Paraya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Apna Paraya by दुखनराम - Dukhanram

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about दुखनराम - Dukhanram

Add Infomation AboutDukhanram

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अपना-पराया ७. दीनू--मगर, अभी भिरजा साव के घर से सीक्र-कवाव दे गया है कोई । रानी--अच्छा ! आज ज़माने पर कैसे याद आह मै“ मगर तुम्हें तो जता देना था कि में अब******* दीनू--( हँसकर ) भगविन हो गई ! र न्‍नी--नहीं-नहीं, यह कह ने की नहीं ০৪৬ ৩৬৩ तुम छोड़ो भी ००००० ० अपने एक खत के साथ वापस कर दृगी। युसुफ-- ( सामने आकर ) में तो हाथ बाँधे खड़ा ही हूँ--साथ लिये जाऊं गा, कोई भुजायका न्ह | रानी--अरे ! अभी तुम गये नहीं ! युसुफ--जी, जा ही रहा हँ--मेरा तो कोई काम नहीं अब | में तो तुम्हारी आँखों के आँसू पर खिंच आया था, नहीं तो 0००० कक रानी--( आँखें उठाकर ) ऐसा क्‍यों कह रहे हो, मेंने तो कुछ कहा नहीं । युसुफ--जी नहीं, बात यह है कि आपका चेहरा खिल उठा-- खुशी की लर है । मैने देख लिया-लाखों पाया । अब मेरी वैसी जरूरत न रही। ` ` | रानी--भला यह भी कोई बात है ९ युसुफ--बन्दा परवर, यों आने के लिए तो आपके दर पर दुनियाँ आती हे। हँसी पी के साथी तो बे-वुलाये भी आसमान से बरस आते हैं बराबर, मगर कहीं, खुदा न करे, आसमान सर पर फटा ओर उमड़ आये तुम्हारी आँखों में आँसू तो फिर आये तो कोई उन्हें अपनी आँखों में पिरोने'**“*“*“'जाने दीजिये, आप फूलें-फलें । रानी--अच्छा भई, फिर कभी ++ उठ खड़ी होती है ) युसुफ--जी, जेसी मजी “खुदा हाफिज । ( युसुफ दूसरी ओर मुड़ता है। एक अजब आवेश में लगता है गुनगुनाने भी ) “वो फिर वाद्‌। मिलने को करते हँ यानी, ( अभी कुछ दिनों ओर जीवा पड़ेगा |” )




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now