व्यंग - कौतुक | Vyangy Kautuk
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
143
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चड़ चरां का मन्तत्य ~
अगर आप पूछे कि उनकी चीनी हम क्यो खायँगे श्रौर
उनके बिलल में क्यों रहेंगे ते! इसका कामितल्न जबाब यही है कि
बह चींटियाँ हैं श्रार हम चींटे | दूसरे, हम चींटियों के उन्नति-
साधन में नि:खाथे भाव से प्रवृत्त हुए हैं, इसलिए हम उनकी
चोनी खायँगे श्रोर ।बल्ल में भो रहेंगे । तीसरे, हमको अपनी
प्रिय उच्च भूमि त्याग करके शआ्राना होगा, इस कारण इस दुःग्व के
निवारणाथे चोनी कुछ अधिक परिमाण में खाना आवश्यक है ।
चरे, विदैश मे रहकर विजाति क बीच विचरण करना होगा,*
फिर प्रतिकूल जल्ल-वायु के सेवन से हमें अनेऋ रोग हो सकते
हैं। इससे अनुमान होता है कि हम बहुत दिन तक नहीं
बचेंगे। हाय! हम लोगों की क्या शोचनीय अवस्था है । हीन
जाति के उपका र के हेतु जब हम अपने प्राण तक देने को प्रस्तुत
हैं तब चोनी खायेंगे ही দাহ লিল में, जहां तक जगह मिलेगी,
हम अपने साले-बहनेई अादि को साथ लेकर रहेंगे ही ।
चींटियाँ यदि आपत्ति करेंगी तो हम उन्हें भ्रकृतज्ञ कहेंगे ।
यदि वे चीनी खाना ओर बिल्ल में रहना चाहेंगी ते हम चींट-
भाषा में उन्हें स्पष्ट कहेंगे कि तुम चींटी हो।, खिन्न हो, निरीह
प्राणी हो । इससे बढ़कर श्रोर प्रबल युक्ति क्या हा सकती है ?
ता चीरियाँं खार्यगी क्या? यह हम नही जानते । इ
भोजन श्रौर वासस्थान की श्रसुविवा हा सकती है, किन्तु
পপ পাপ পপ ० कानना ~ ~~~ পপ স্পা পপ পপ
# हम जानते है, वे सड़ो-गढ्ी चीज आकर भी प्राणधारण कर
सकती हैं |--अनुवादक ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...