व्यंग - कौतुक | Vyangy Kautuk

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Vyangy Kautuk by रविन्द्रनाथ ठाकुर - Ravindra Nath Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चड़ चरां का मन्तत्य ~ अगर आप पूछे कि उनकी चीनी हम क्यो खायँगे श्रौर उनके बिलल में क्‍यों रहेंगे ते! इसका कामितल्न जबाब यही है कि बह चींटियाँ हैं श्रार हम चींटे | दूसरे, हम चींटियों के उन्नति- साधन में नि:खाथे भाव से प्रवृत्त हुए हैं, इसलिए हम उनकी चोनी खायँगे श्रोर ।बल्ल में भो रहेंगे । तीसरे, हमको अपनी प्रिय उच्च भूमि त्याग करके शआ्राना होगा, इस कारण इस दुःग्व के निवारणाथे चोनी कुछ अधिक परिमाण में खाना आवश्यक है । चरे, विदैश मे रहकर विजाति क बीच विचरण करना होगा,* फिर प्रतिकूल जल्ल-वायु के सेवन से हमें अनेऋ रोग हो सकते हैं। इससे अनुमान होता है कि हम बहुत दिन तक नहीं बचेंगे। हाय! हम लोगों की क्या शोचनीय अवस्था है । हीन जाति के उपका र के हेतु जब हम अपने प्राण तक देने को प्रस्तुत हैं तब चोनी खायेंगे ही দাহ লিল में, जहां तक जगह मिलेगी, हम अपने साले-बहनेई अादि को साथ लेकर रहेंगे ही । चींटियाँ यदि आपत्ति करेंगी तो हम उन्हें भ्रकृतज्ञ कहेंगे । यदि वे चीनी खाना ओर बिल्ल में रहना चाहेंगी ते हम चींट- भाषा में उन्हें स्पष्ट कहेंगे कि तुम चींटी हो।, खिन्न हो, निरीह प्राणी हो । इससे बढ़कर श्रोर प्रबल युक्ति क्या हा सकती है ? ता चीरियाँं खार्यगी क्या? यह हम नही जानते । इ भोजन श्रौर वासस्थान की श्रसुविवा हा सकती है, किन्तु পপ পাপ পপ ० कानना ~ ~~~ পপ স্পা পপ পপ # हम जानते है, वे सड़ो-गढ्ी चीज आकर भी प्राणधारण कर सकती हैं |--अनुवादक ।




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