महाकवि सूर और सूर नवीन | Mahakavi Soor Aur Soor Naveen
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
280
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जाकी कृपा पंगु ग्रिरि लंघे, अँधरे को सब कछ ভহভাঁহ
बहिरौ सुने, गूँग पुनि बोले, रंक चले सिर ^ त्र॒ धराइ
सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदों तिहि पाइ
और कहता हूँ --
'अब मैं जानी, देह बुढ़ानी,
--सूरसागर, पद ३०५। किशोरी लाल युप्त
सुधव, वाराणसी द एम० ए० ( हिंदी, अंग्रेजी),
पितृपक्ष ४, सं० २०४२ | पी-एच० डी ०, डी ° लिट्०
२ अक्टूबर १६९८५
पुनश्च
धि ग्रंथ के डैपते-छपते चंद्रवरदाई के वंशज सूर का यह उल्लेख मुझे सम्मेलन
द्वारा प्रकाशित 'सूर-संदर्भ' में पृष्ठ १०० पर मिला है, जिसे वहाँ स्व० डा०
मृंशीराम शर्मा सोम के प्रसिद्ध ग्रंथ 'सूर-सोरभ' पृष्ठ ४३ से उद्धत किया गया है ।
सूरदास इति ज्ञेयः कष्णलीलाकरः कविः
दाम्भु्वेचन्द्रभदुस्य कुले जातो हरित्रिय
मृशीराम जीने इसे मविष्य पुराण से भवरत किया है। यह भविष्य
पुराण, प्रतिसर्ग पर्व तीसरा भाग, अध्याय २२ का इलोक ३०६१ है ।
भविष्य पुराण में सूर के साथ-साथ तुलसी, हिंत हरिवंश आदि अन्य भक्त
कवियों के भी उल्लेख हैं ।
“चन्द्रभट्स्य कुले जातो' वाला यह उल्लेख साहित्य लहरी कै वंशावली वलि
पद को पुणंतया संपुष्ट करता है । हरि-इच्छा ।
२२ जून ৭৪০ किशोरीलाल गुप्त
रः # ऋ
[^ ग्यारह ]
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