विलोम गति | Vilom Gati

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Vilom Gati by गुरुदत्त - Guru Dutt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एकत्रित किए थे, देख लिये। मोहन ने मद्य पीने क॑ बनतो ने न कर दी | इस पर मोइन का कराध भरा गय ही कहा, दे दो। में जहाँ घाहूँगा खब কথা “पर ये तुम्हारे नहीं हैँ ।? धतो किसके हं (१7 परे ह |! $ “कहो से लाई हो तुम १ “भीख माँगकर लाई हूँ |?! भट बोलती हे ¦ तुम व्यभिचारिणी हो | वेश्या दी সী पशा यह रुपये लाई हो । निकल जाओ मेरे घर से | मोहन ने सत्र रुपये छीन लिये और उसको धक्के मारकर घर से बाहर निकाल दिया | पौष का महीना था। वर्षा हो रही थी। बनतो गभेवती थी | उसके पति का कच्चा सकान इंटगाह के पीछे, पहाड़ी बे नीचे बना था| वहाँ और भी बहुत से ऐसे मकान थे। इन मकानों का भाड़ा दो दपया मासिक था | बनतो मकान के बाहर वर्षा में भीगती हुईं बहुत देर तक उसका विचार था कि उसका घर बाला श्रन्तम दया कर उरं लेगा, परन्तु ऐसा कुछ नर्हा हृश्रा वषा श्रौर टर हवा जवर शरस्य हो गई, तो वह वहाँ से चल पड़ी । वह चली तो शरीर को गरम करने के लिए थी परन्तु भाग्य उसे ले गया पहाड़गंज के पुल्ञ के नीने | वा। बहुत से भिखारी पुल की दीवार के साथ से हुए वेधां तथा हवा के मौके से अपने को बचाने के लिए एकत्रित थे और श्राग ताप रहे थे । बनतो वहाँ पहुँची तो मिखारियों मे से एक ने कहा, “श्रो श्रौरत! श्राय तापोगी १ वह सरदी से ठिठ्॒र रही थी | इस कारण बिना कुछ विचार ँ बेठ गई | किसी ने पूछा, “कौन हो १ “भिखारिन |? “कहाँ भीख मोँगती हो £ १६ 0 ‡ श्रन्दर नै




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