जैनेन्द्र के कथा साहित्य का अनुशीलन | Jainendra Ke Katha Sahitya Ka Anushilan

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Book Image : जैनेन्द्र के कथा साहित्य का अनुशीलन  - Jainendra Ke Katha Sahitya Ka Anushilan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ हए हम अपनी धर्मनिष्ठा भं दद रह सकते है -। इसीलिए जैनेन्द्र जी की ओपन्यसिक रचनाओं भें धर्मगत मूल्य संक्रमणता कै स्तर पर मानव धर्म की अभिव्यंजना हुई है । श्त्यागपत्र की मृणाल देहदान কী नारी धर्म मानती हे, सती का आदर्शः समझती है । कल्याणी उपन्यास की कल्याणी भी मनुष्य के ध्म का समर्थन करती है - मेरा जगन्नाथ तो सब कहीं है ....... किसी को घर से निराश लौटाकर मैं मुंह में दाना डालूँ तो भेरा जगन्नाथ मुझे क्या करेगा ? नर के अनादर भ कहां नारायण की पूजना है 1 जयवर्धन भं इला, जय की व्याहता न होकर भी जय के प्रवासकाल भे अन्न का दाना तब तक मुंह में नहीं डालती जब तक फोन के माध्यम से जय की कुशल क्षेम मिल न जये । किन्तु “अनामस्वामी की उदिता तो स्पष्ट शब्दों में परम्परागत धार्मिक मूल्यों का संक्रमण प्रस्तुत करती है - मजहब ने हमें मूर्खता मे डाल रखा है । वह सत्यानाश की जड़ है । मजहब है तब तक गुलामी है .... दुनियां जो झूठ और ईश्वर को सच मानकर तो दुनिया की तरक्की हो ही नहीं सकतीं 1“ व्यक्तिगत मूल्यो की स्थापना के कारण जैनेन्द्र जी के उपन्यासों म परम्परागत नैतिक मूल्यों की संक्रमणशीलता द्विखाई देती है । जिनमें उचित अनुचित पाप - पुण्य एवम्‌ मान स्वेच्छाचार आदि का वर्णन प्राप्त होता है । अश्लीलता के सन्दर्भ में जैनेन्द्र जी बहुत कुछ लिखा है एवम अपने मतों को पर्याप्त स्पष्टता से प्रकट किया है । साधारणतः शरीर के प्रदर्शन को, या शरीर के नग्न रूप के चित्रण को अश्लील माना जा सकता है, परन्तु जैनेन्द्र जी की धारण है कि अश्लीलता का सम्बन्ध शरीर से कदापि नहीं है - देह | - जैनेन्द्र : समय समस्या और सिद्धान्त : प्रष्ठ - 487 2- जैनेन्द्र : त्याग पत्र : पृष्ठ - 55 3 - जैनेन्द्र : कल्याणी : पृष्ठ ~ 69 : अनामस्वामी : पष्ठ - 94 से 95




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