बालिका शिक्षा एवं विकास की योजनाओं के प्रति दलित महिलाओं की संचेतना का समाजशास्त्रीय अध्ययन | Balika Shiksha Yom Vikas Ki Yojanion Kay Prati Dalit Mahilon Ki Sanschatana Ka
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
177 MB
कुल पष्ठ :
267
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समाज में (दलित वर्ग को अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य
पिछड़े वर्गों के रूप में स्वीकार किया गया है। अतः अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों
तथा अन्य पिछड़े वर्गों को हम दलित वर्ग के रूप में स्वीकार करते है। दलित शब्द से अभिप्राय
जैसा की शब्द से स्पष्ट होता है कि वह व्यक्ति या वर्ग जिसका समाज में अत्यन्त निम्न स्थान
है, जो उत्पीड़न का शिकार है तथा जिसका जीवन आभाव, दुख: तथा अपमान भरा जीवन व्यतीत
होता है। अतः दलित वर्ग का अभिप्राय उन लोगों से है जिनकी आर्थिक स्थिति अत्यन्त निम्न है
` अर्थात् अत्यन्त निम्न वर्ग ही दलित वर्ग कहलाता है।**
भारत कं विकास क्रम में दलित शब्द का प्रयोग अनुसूचित जाति, अनुसूचित
जनजाति एवं अन्य पिछड़े वर्गा में ऐसे व्यक्ति के सम्बन्ध में किया जाता है। जो गरीबी रेखा के
नीचे अपना जीवन यापन कर रहे है। इनका निर्धारण “योजना आयोग” ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों
में गरीबी क॑ आय प्रमाण पत्रों कं आधार पर करता हे । योजना आयोग की दृष्टि से गरीबवे
व्यक्ति कहे जाते है. जिनका उपभोग परिव्यय अपर्याप्त है, जिनकी श्रम शक्ति कम हे तथा जिन्हे
योजना आयोग मं न्यूनतम निर्धारित कैलोरी की मात्रा भी प्राप्त नही होती हे
अतः दलितों की विभिन्न समस्यायें खास कर इन महिलाओं की समस्यायें भारत के
माथे पर बहुत बड़ा कलंक है। ये महिलायें प्राचीन समय से ही सामाजिक, आर्थिक, भेदभाव का
. शिकार थी। यथा छुआछूत, मंदिरों में प्रवेश निषेध एवं सार्वजनिक कुओं से पानी भरने पर भेदभाव,
शादी विवाह मेँ दूल्हे के घोड़ी पर चढ़ने पर रोक आदि इन सामाजिक क्रीतियों को दूर करने
कं लिये इसका आर्थिक उत्थान हेतु भारत सरकार या अन्य स्वयं सेवी संगठनों के द्वारा विभिन्न
प्रयास किये गये हे। एसा माना गया कि पिषछड़पन का कारण आर्थिक है | इनके लिये यह महत्व
समञ्या गया कि उन्हं समाज कि उन्हें समाज मेँ बराबरी का दर्जा ओर न्याय मिले। इसके लिये
जौ आधार तय किये गये थे उसमें निरक्षता का उन्मूलन, बंधुआ मजदूरी की समाप्ति, पूजी के
केन्द्रीय कर पर रोक, राजनीतिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण हर किस्म कें शोषण की समाप्ति
आरक्षण द्वारा सेवाओं मे स्थान सामाजिक भेदभाव की समाप्ति आदि था [7१%
15. डा. धर्मवीर एवं कमलेश महाजन -- 2003 इ विद -- पृ. 95-101
16. त्रिपाठी आर. क. 1995 जातिवाद ओरं सामा. न्याय लिये सहर्ष कल्याण मुख्यालय द्वारा आयोजित एवं
गोविन्द बल्लभ पंत सामा. विज्ञान संस्थान द्वारा आयोजित, संगोष्ठी मे अध्यक्षीय भाषण के अंश जुलाई 29,
पृ. 3 . | নি ৭
[14]
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