बालक के नैतिक विकास पर मानसिक स्वास्थ्य, अनुशासन तथा आर्थिक -सामाजिक स्तर के प्रभाव का अध्ययन | Balak Ke Naitik Vikas Par Mansik Swasthya, Anushasan Tatha Arthik-Samajik Star Ke Prabhav Ka Adhyayan
श्रेणी : भारत / India, संदर्भ पुस्तक / Reference book
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
94 MB
कुल पष्ठ :
317
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रहता है। प्रत्येक अवस्था के लक्षण यद्यपि भिन्न-भिन्न होते है, किन्तु एक अवस्था के लक्षण
अपनी पूर्ण अवस्था के लक्षणों पर आधारित होते है। विद्वानों ने बाल विकास कम को समझाने के
लिये विभिन्न अवस्थाओं में वर्गीकृत किया है।
हरलॉक (1967) महोदय के अनुसार बालक विकास को निम्नलिखित अवस्थाओं में
वर्गीकृत गया है :-
जन्म पूर्वं अवस्था - गर्भावस्था से जन्म तक
शैश्वावस्था - जन्म से दूसरे सप्ताह के अंत तक
वत्सावस्था - दूसरे सप्ताह के अंत से दूसरे वर्ष के अंत तक
पूर्वं बाल्यावस्था - 2 से 6 वर्ष
उत्तर बाल्यावस्था ठ 6 से 12 वषं
यौवनारंभ - 12 से 14 वर्ष
पूर्व किशोरावस्था - 14 से 17 वर्ष
उत्तर किशोरावस्था - 17 से 21 वर्ष
पूर्व प्रौढावस्था ~ 21 से 40 वर्ष
मध्य वय - 40 से 60 वर्ष
वृद्धावस्था - 60 वषं से मृत्युपर्यन्त
प्रस्तुत शोध में शोधार्थीं द्वारा केवल बाल्यावस्था को आयु को ही सम्मिलित किया गया
दै। मनोवैज्ञानिक स्लीवन द्वारा बाल्यावस्था 5 से 11 वर्षं तक की आयु मानी गई है। साथ ही
हेविंगहरस्द (1953) ने 6 से 12 वर्षं तक बाल्यावस्था मानी है। इस संबंध मे अंग्रेजी भाषा के
महाकवि मिल्टन कौ एक पंक्ति 11५100५ $ 1०४८७ 1116 11181, 25 11101119 {116
५०४५४ प्रसिद्ध है।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...