संसार शासन | Sansar Shasan

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Sansar Shasan by रामनारायण मिश्र - Ramnarayan Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) जर्मनी प्रदेक्ष में छोरे दलो कौ वोट बढ़े दलों मे मिलने क्रा प्रयक्ष किया जा रहा है। निर्वाचन केन्द्रों को भो छोटा करने का प्रयत्न है जिससे प्रतिनिधि अथवा जनता में अधिक संघर्ष हो सके | ज़ोकोस्लोवेकिया में भी सूची और आवश्यक बोट के विरुद्ध आन्दोलन हो रहा है | वोट वास्तव में दुल के प्रोग्राम के छिये होनी चाहिये न कि सूची के लिये । पोलेंड में कुछ प्रतिनिधि नेता ( 7८४००७८ ) को निर्वाचन नियमों में परिवर्तन करने का अधिकार देना चाहते थे परन्तु असफल रहे । इतना आक्षेप ओर आन्दोलन होने पर भी इस शेली का जल्दी परिवर्तन नहीं हो सकता क्योंकि कोई नया भागे भी नहीं दिखाई देता। छोटे दुल वाले हंगलेंड की भाँति एक केन्द्र एक प्रतिनिधि (9181९ पाशा7९7४ ८07501एप९०८1८४) भी नहीं चाहते हैं । ऐसा करने से अन्याय होने की सम्भावना है । कुछ लोगों का कथन है कि प्रजातन्त्र राज्य शासन में भिन्न भिन्न व्यवसायों का भी प्रतिनिधित्व होना चाहिये । दीघे संख्या निवोचन की स्थापना करना उनको अपना ख्तंत्र सत प्रकट करने से रोकना है । इस प्रथा के परिचालन से सव साधारण सत ( (८४८४४ ज11| ) ठीक तरह से प्रकट नहीं हो सकता । निर्वाचन विधि में परिवर्तन करने से प्रबन्ध कारिणी की बनावट में स्त्रयं परिवर्तन हो जाथगा | ऐसा होने पर दल संघ प्रबन्ध कारिणी ( (0थ1घ४०४ (0०फरथाएप्राट१1५५ ) का अन्त हो जायगा । सन्‌ १९२६ में रेस्टोनिया के निर्वाचन नियमों में परिवतंन कर दिया गया । यदि कोई दर निर्वाचन के समय पालियामेन्ट में दो प्रतिनिधि भेजने में असमर्थ रहेगा तो उसकी ज़मानत ज़ब्त कर ली जायेगी । कुछ दलों ने संगठन कर लिया। परिणाम यह हुआ कि ३० दलों के वजाय केवल १४ दर रह गये । ५-जनता-निर्णेय ओर प्रस्तावना (05166575100) ৪১] [5516150৮5) नवीन शासन विधान बनाते समय महाजुभावषों ने प्रजा के सत्वों पर विशेष जोर ही नहीं दिया है वरन्‌ उन्होने उनको अपने अधिकार कायं रूप में परिणत करने के साधन भी निर्माण किये है । दगरेड की जनता केवर निर्वाचन काल में




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