भाषाविज्ञान के सिद्धान्त | Bhashavigyan Ke Sidhant

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Bhashavigyan Ke Sidhant by रामेश्वर दयालु अगरवाल - Rameshwar Dayalu Agarwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आपाबिनान : परिभाषा एवं क्षेत्र | १७ विज्ञान वा सम्बन्ध मभी देशों और सभो वालों की सभी भाषाओं से होता है । भूत एवं अनुमान पर झ्लाघारित भाषाएँ भी उसके क्षेत्र मे झा जाती हैं। व्याकरण अश्येक् भाषा का पृषत-पृथर्‌ होता है, जबकि भाषाविज्ञान सभी का समान होता है। इसो कारण भाषाविज्ञान को व्याकरण कवा व्याकरण भी कहा जाता है। शब्दों का शुद्ध प्रयोग सोसने बे लिए. ध्यादरण का ज्ञान श्रावश्यक है. फिन्तु भाषा के सम्बन्ध में हमारी झनेक जिन्नासाप्रो वा समाधान भाषावितान के द्वारा ही होता है। (४) व्याकरण रूदिवादी है, भाषाविज्ञान प्रगतिवादौ 1 व्याकरण कौ दृष्टि में तिमी भी হাহ को भदत्र बेदल उसी रुप से प्रयुवत किया जाना चाहिए, अग्यवा बह प्रशुद्ध माना जायगा। भाषाविज्ञान की दृष्टि में ऐसे भणुद्ध शब्द प्रपने पूर्ववर्ती शब्दों का विकास हैं, यथा, संस्कृत व्याकरण के प्रमुखार केवल सर्व! झब्द ही शुद्ध है, “सव्यः भ्रौर 'सब' भशुद्ध, डिन्‍्तु भाषाविज्ञान की दृष्टि में ये शब्द শষ বধ विकसित रुप हैं । (६) व्याकरण का सम्बन्ध केवल शिप्द एवं साहित्यिक भाषा से होता है वर भाषाविज्ञान बा सम्बन्ध भ्रसम्य एवं जगली मनुध्यों को बोली से भी होता है, अपितु वह इन्हें प्रधिक महत्त्व देता है, क्योकि इनके सहारे वह मूल भाषा तक शीघ्र पहुंच सकता है। उपयु कत्र प्रन्तर के होते हुए भी भाषाविज्ञान भ्रौर व्याकरण एक दूसरे के उपवारी भी हैं। झपने द्वारा अघुद्ध ठहराये गये रूप्रो को भी भाषाविज्ञान द्वारा चैज्ञानिक दृष्टि से विवेचित होने पर व्याकरण पुनः स्वीकार कर लेता है प्रौर उनके प्रयोग के निए नये नियमों तक की रचना करता है । इम प्रकार भापाविज्ञान व्याकरण দী नई दृष्टि प्रदान कर उसका उपकारो प्रिद्ध होता है। इगी भाँति ब्यावरण भी प्रपने द्वारा प्रस्तुत सामग्री के श्रध्यपत का प्रवसर देकर भाषाविज्ञान को सामान्य नियम बनाने में सहायता देता है। व्याकरण का सीमित क्षेत्र भी भ्रापा- विज्ञान के द्वारा विस्तार प्राप्त कर लेता है । निष्प यह्‌ कि भाषा विज्ञान पौर व्यावरण का परस्पर घनिष्ठ मम्दन्ध है । भाषाबिज्ञान तथा शाहिसय--भाषाविज्ञान एक विज्ञान है जबकि যাহ एक क्ला। दोनों म पर्याप्त अस्तर है। भाषाविज्ञान में भाषा का সমল উম स्वरूप को जानने ने लिये जिया जाता हैं, ऊबकि साहित्य से भाषाजा प्रप्यदन साहित्य के भ्च॑ को समभने बी दृष्टि से जिया जाता है। भावाविज्ञान का सम्बन्ध मस्तिष्कः मे पिक है, साहित्य का हृदय से । प्रथम के द्वारा मस्तिप्य को तामा. वत्ति द्यान्‍्त होती है, ट्वितोय के द्वारा हृदय बी रसारदाइत-बुत्ति । प्रधम का सेवर विस्तृत है बयोकि उमये साहिए्य में प्रश्नयुश्त भापाणों एक » होता है, दिलोय दा क्षेत्र सोमित है बयोरि उसमे ढेदस साहित्यिक সাপ) কা डी घष्षयन होता है। মাঘ হী साहित्य ओर भाषाविज्ञान एक-दूसरे बे उपचारों भो # +




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