यूरोपीय दर्शन | Yuropiy Darshan

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Yuropiy Darshan by राजा सहाय बहादुर भीनगा - Raja Sahay Bahadur Bheenga

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४५) एद्‌ का सणइन और संतार फे नियामक शगुण इंश्यर फा व्यापन कर प्षक्ति मागे फा प्रचार फरमा था। सध्य संमय नें ग्रीस के मूल ग्रन्थ लुप्त हो गए थे । टीकाओं से ही उन डे विषम चिदिति हो सकते थे । पुनः ऊय इटली प्रदेश भे विया का उङ्जीयन (1९ ७5४४८ ) छुआ और यहीं भे देशान्तरों में भी विद्या का प्रचार होने गा तय ग्रीस के प्रादोन प्रन्य पुनः प्रकाशित हुए । कुछ द्नितक सो अरिस्टाटल आदि माघौन दाशनिकों ही फे अनुगामी छोग हुएं। पर चिक्नान मे कोपनिकस्‌ गेलीलियो आदि छे भृभ्रमण, प्रूकेन्द्रक ज्यातिगंणित आदि देषयों के आविभोव होने से और बेकन आदि ताकषिंकों की नई परोक्षा-प्रधान दैजश्ञानिक रोतियेए फे प्रचार होने से प्राचीन दशनों में श्रद्दा कम होती गई और डेकाट, लीज्लिज़ आदि स्वतन्त्र दाशमिक, निकसे! पमं भे भनेाचिक्नान (०७%ण०४ ) फे ऊपर अधिक श्रद्दा हाने लगी । अनुभव और परीक्षा ( 005858100 ००4 हपफल्णण््म } सुर्य उपाय कषान रीर 'दिक्षान दोने! फो उस्तति के छिपे आयश्यकू समफ्रे गए । इडूलिएड में क्युम, और फ्रांस में फ़ाणिडयेक ने प्राचीन कल्पनाओं के सुवा निमूख प्रतिपादन कर मनुष्य फे चान छि सदया अनुन्षवाधोन आर जगत्‌ के मनुष्य्नाना- धीन होने फ्ले कारण संपूर्ण जगत्‌ ही को अनुभ्रवाधीन मति- पादन किया । इन गों का मत জল্লজলাতি (51002) फटा জালা $। अन्तसः गत शताददी में जमनी प्रदेश में काएट मामफ भहादाशेमिक हुआ जिसने प्राचोण कर्पासं के उपदेशयाद्‌




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