अभिवंदन ग्रन्थ | Abhivandan Granth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
37 MB
कुल पष्ठ :
686
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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जिस प्रकार बीज को गंगीते में शोने के बाद साली की आँखें क्रमशः पौधा, वृद्ष और
फलानजोकत के लिए जालापित रहती हैं, उसी भकार जब से परिषद् के माध्यम से पूज्म भरी
एृस्ण ' जांचार्न विमलशामर जी महाराज के अभिवस््दवार्थ 'अभिवन्दत ग्रभ' का कार्य शुभारम्भ
कवा वधी ठे भवनि भक्त यों कौ जाँलें प्रंधावशोकल के लिए व्याकुस है
विरतो के भम पंच के प्रकाशन का कार किसी तरह পু সী सका है, यद्यपि आचार्य
भी के अभिवमदन में कौ अखिल भारतोंत स्काह्ाव शिक्षण परिषद् हारा अभी तक अनेकों छोटो
बढी कतिया प्रकाशित को जा चुकी हैं तबापि जितनी समस्वाओं का জাদলা ঘুম ग्रग्व के प्रका-
शत में करना पड़ा है, इससे पहले उसका ঈন্গর কর্থী नहीं हुआ ।
इस अभिवरदत प्रस् का अकाोशस 'हादशांस सार साम से होता शय हुआ चा, तदनुरूप
साधु-संत त्याभीवृष्द तथा बिडातों के हृल्सोझआ प्रिक्षम से इस प्रस्य का तकज एवं पपाद
परम पूज्य भाषाये कश्प स्पाहाद विश्ञाभूषंध सम्जति सागर 'ज्ानातस्थ' जी महाराज ते किया ।
उसी का एक अंश अभधिन्रन्दन भरस्य के भाने ति तवाद किवः गया है ।
प्रस्तुत प्रम्थ में आभ्ार्य भी के पति श्ादु-ऋतों, भक्तमणों की शुभकामताओं, प्रेरक-पसंगों
चित्रों आदि के साथ-साथ रोचक शैसी में श्रीमा[् डा« सुरेन्द्र कुसार ज॑ंन भारती जी द्वारा
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1২ लिखित भाचाये श्री का अनुकरणीय भौगत वक्षन है ।
बोदिक जिल्लासुओं के लिए 'जाचारगि' में वणित सामग्री का अति सक्षिप्त रूप से, जेगा-
২/ आयो द्वारा लिखित विभिन्न प्रन्थों से संकर्सन साधुओों की दीक्षा विधि, मूलभुण
उत्तरमुण, समाचार, पिए्डशुडि, भ।यता, ध्याज, सल्लेखता, समाधि आदि म्नि, उपाध्याय, वावाय
की पूर्ण क्रियाओं का विवेचन किया गया है
ज्ञान एवं उसके उपभोग के ধা আজ জা में स्याद्राद एवं अनेकास्त तथा उसके
प्रयोजन का सफल विशेषन किया गंग्रां है ।
* इस ग्रस्थ के प्रकारम् में सर्व प्रथम हल उत शासु-संतों के आभारी हैं, जिन्होंमे स्थाहाद
सयी जिनवाणी रूष धातर आ बज्यते कर भाजि कपु मवतीत प्रदात किये ।
देश के पण्मानंय विशिष्ट दिढ़ानों ते इस #र्य के प्रकाशन में अपना श्रम साध्य सहयोग
प्रदान किया है तदर्थ हम उनके दिशिय्ट' आभारो हैं। हमारे धाबी व्याधी भ्रतो भाई-बहिसों ते
हर प्रकार की व्यदरझ में ফিড ওযা অনা भो विशेष पोषदान विभा है, वह अशिस्मरणोग्र
रहेगा ।
इस प्रत्प का धुरचिपृें अकाशन लिगंदाती महानुप्ानों के हम्य के संभव हो सका है,
उसको इस आशा के साथ विशिष्ट धन्यवाद दिए ब्रिना रहा नहीं जा सकता कि लेखमासा के
शेध भथ क प्रकाशन भी उन दानी महांनुभांवों के सहयोग से प्रकाशित होगा है, जिम्होंते
स्वीक्षतियाँ प्रदान की हैं
इस प्रत्थ के मुद्रण कार्य में ससथा समाज एव प्रेस आदि के जिनं जिन् महमुभवोंका
सहयोग प्राप्त हुआ, उन सबके দুল विशेष भापारी हैं। विशेधु किमंधिकरण -
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| श्र. धुनीता शास्त्री
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