आर्यों का आदि निवास : मध्य हिमालय | Aryon Ka Aaadi Nivaas Madhya Himalaya

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Aryon Ka Aaadi Nivaas Madhya Himalaya by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ झायों का झावि निवास मध्य हिमालय प्रतिपादित है, परन्तु जिस प्रकार वेदो प्रौर पुराखो के मौखिक रूप से पीढी-दर- पीढी प्रचलित रहने के कारण, लोगों ने श्रपने-श्रपने समय की नयी-नयी घटनाश्रो श्रौरं नये-नये नामो पर प्राचीनता की मोहर लगाने के लिये, उन्हें उनमे सम्मिलित कर उनकी ऐतिहासिक स्थिति को विवादास्पद कर दिया है, उससे केदारखड भी श्रुता नही है । फिर भी वेदो प्रौर पुराणो हारा प्रतिपादित जिस प्राचीनता का कैदारखड मे उल्लेख है, उसकी सत्यता निविवाद है । उसको भी प्रक्षिप्त सिद्ध करके, उसकी एेतिहामिक सत्यता की भ्रस्वीकृति से सम्पूर्णं प्राचीन हिन्द वाडमय की प्राचीनता विवादास्पद हो जाती है । गढवाल मध्य हिमालय के सबसे अधिक हिमरशिखरो से श्राच्छादित है । समुद्र गर्भ से जब लाखो बर्ष पूर्व हिमालय का प्रथम श्राविर्भाव हुआ होगा उस यूग में इसका रूप इतना ऊँचा-नीचा, ऊबड-खाबड नही रहा होगा । यह पर्वतीय प्रदेश प्रवर प्रवाहिनी नदियो का देश है। सदियों से भू-कम्प, प्रति वर्ष बरसाती बाढो, नदी-नालों से कट-कट कर इसके मूल कऋऋग्वैदिक रूप शौर बतंमान रूप मे एवं उसके प्राचीन ऐतिहासिक स्मारकों की वास्तविक भौगोलिक स्थिति में श्राकाश-पाताल का अन्तर पडता चला गया है। सन्‌ १८८२ मे ण्टकिन्सन श्रादि कृ श्रग्रेज विद्रानोने प्राय प्रचलित किम्बदन्तियो, प्राचीन कहावतो, लोक-गाथाश्रो, शिलालेखो, ताघ्रपत्रो तथा श्रन्य णेतिहासिक श्रनुमानो के आधार पर प्रथम बार इसके इतिहास की प्रस्पष्टता को थोडा-बहुत दूर करने का प्रयत्न किया है | एटकिन्सन साहब ने, केप्टेन हार्डबिक, मग्लमट श्राफिसर बक्येट, विलियम्म तथा अल्मोडे के पडित रुद्रदत्त पत ढारा लिखी हुई पुस्तिको से भी इस सम्बन्ध में सहायता ली है। एच० जी वाल्टन ने सन्‌ १६२१ में प्रकाशित गढवाल गजेटियर्स में गढ़वाल का जो इतिहास दिया है, वह पूर्णत एटकिन्सन के इतिहास के ही श्राधार पर है । एटकिन्सन से पूवं श्रीनगर के प्रसिद्ध चित्रकार मोलाराम द्वारा सन्‌ १८८० ईसवी में लिखा हुआ गढ गाज वश ॒का छन्दोवद्ध इतिहास भौ उल्लेखनीय है जिसमे लगभग ८वी शताब्दी के बाद गढ़वाल-नरेशो का सक्षिप्त ऐतिहासिक वृत्त वर्णित हैं। ८वी शताब्दी से पूर्व गढ़वाल की ऐतिहासिक स्थिति का उसमे भी उल्लेख नही है । वात्टन से पूर्व सन्‌ १६९१७ में ठॉ० पातीराम ने श्रग्नेजी में अपना प्राचीन ओर श्र्वाचीन ) ( ঠ200৭] 872८९॥६ &. (०१९८०) ) गढवाल प्रकाशित किया । इस पुस्तक के द्वारा डाक्टर साहब ने ८वी शताब्दी से पूर्व गढवाल के श्रन्धका रमय अतीत पर भी यथासाध्य ऐतिहासिक प्रकाश डालने का प्रयत्न किया । परन्तु वह भी अत्यन्त अस्पष्ट भर अपर्याप्त है। उनके पश्चात्‌ टिहरी




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