ध्वन्यालोक | Dhvanyaalok

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Dhvanyaalok by Dr.Nagendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हर सोलह ब्रिरोधी रस के सह समावेश के २ उदाहरण । स्वाभाविक श्रौर समारोपित श्रद्धभाव प्राप्ति के उदाहरण । दो विरोधी रसाद्धो की तीसरे प्रधान रस के श्रद्ध रुप में वर्णन की शदो- पता । श्नुवादाश में विरोध की श्रदोपता। नाटक में विरुद्ध रसाद्धों के श्रमिनय का प्रकार । स्मयंमाण विरोधी रसाद्धों की झ्रदोपता । २१. एक रस की प्रधानता श्रविरोध का मुख्य उपाय का० २१ ३१९२ २९. झनेक रसों में एक की श्रद्धिता का उपपादन का० २२ ग्रे ३. प्रधान रस फेंग श्रस्य रसों द्वारा पोषण का० र३ ३१३ र४. रस विरोध के परिहार का द्वितीय उपाय विरोधी रस के परि- पोषण वग झभाव का० र४ ३१६ २५. रस विरोध परिहार का तृतीय उपाय एकाश्षप विरोधी का भिन्‍ता- श्रयत्व का० रु २६. विरोधी रसों क़े बीच में दोनों के श्रविरोधी रस से व्यवघान चतुर्थ प्रकार कार रेध ु ३२३ २७ रसान्तर से व्यवधान होने पर विरोधी रसों का श्रविरोध का ० २७ ३९६ २८. रसों के विरोधाधिरोध का उपसंहार का० र८ देर ३२७ ९६ श्द्धार में विरोध परिहार श्रनिवार्य का० २६ ३्रघ ३९. विरोधी रसों में भी श्वद्धार का पुट सम्भव का० ३ ण् ु श्श्घ ३१. विरोधाविरोध के ज्ञान से व्यामोहाभाव का० ३ श्ु दे३१ रेर रसानुगुणा झब्दार्य योजना कवि का मुख्य कर्म कार ३२ ३३१ ३३८ दविविध चृत्तियां का० ३३ वाच्य भौर व्यज्य की सहप्रतीति का पुर्वपक्ष श्रौर उसका समा- घान । बाच्य भर व्यज्ञय प्रतीति में क्रम का उपपादन । ब्य्ज- कर्व के विपरीत मीमासक श्रादि का पूर्वपक्ष झौर उसका समा- धान । श्भिषा श्रौर व्यल्जना का कार्यमेद । अ्रभिधा शौर व्यव्जना का रूप भेद । पदार्थ-वाक्यार्थ-न्याय के खण्डन द्वारा तात्पर्ारक्ति से व्यब्जना का भेद निरूपण । गुण प्रधान भेद तथा श्राधय भेद रो वाच्य श्रौर व्यज्ञघ का भेद । और गुणवृत्ति लक्षणा का रूप-भेद थे भेद । भमिषा भर लक्षणा का कि भेद । अ्भिधा लक्षणा तोन धाक्तियों की थापना । श्विविधित वाच्य ध्वनि का गुणवृत्ति लक्षणा थे




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