हिन्दी क्रियाः स्वरूप और विश्लेष्णा | Hindi Kriya Svaroop Aur Vishleshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(भ) के वप म लिखे गये उनके एक एक शब्द मेरे लिये विशेष महत्त्व रखते हैं। मैं ऐसे मापा ममश विद्वान्‌ के समक श्रद्धावनत हूँ । प्रस्तुत प्रवध को मैंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की पी एच० डी० उपाधिक लिये सन्‌ १६६७ इ० म प्रस्तुत क्या यथा । प्रबंध के स्वीक्षत हो जाने पर मैंने सोचा था कि इसको परिष्कृत रूप म प्रकाशित करवाऊँ। पर परिस्थितिवश सोचना मार सोचना दी रह गया और समय की गति को देखते हुये इसे प्रकाशित करवाना पड़ा । भविष्य में मेरा विचार दे कि (हिंदी धातुओं” के सम्बंध में नये सिरे से अध्ययन करूँ और विद्वानों के समच प्रस्तुत करू) प्रस्तुत प्रबच 'दिदी क्रियारूपों का भाषावैज्ञानिक अध्ययन! शोर्पक के रूप भ स्वीकृत हुआ था। प्रवध मुद्रित कराते समय एक दिन भाई डॉ० मोदन लाल বিনাহা ঈ নান হী বার লনা कि प्रवध का अध्ययन भाषा वैज्ञानिक है या ऐतिहासिक, या किसी अन्य प्रकार का इसके लिये प्रमाणपत्र देने की जरूरत नहीं । बात मुक्के भी जच गयी और मैंने उक्त शीर्षक के स्थान पर “हिंदी क्रिया स्वरूप और विश्लेषण” रखना अधिक उचित समभा । डॉ० तिवारी को इस परामश के लिये घयवाद देता हैँ । प्रस्ठत शोध प्रवध को समष्टि रूप प्रदान फरने के लिये मुझे अन्य अनेक विद्वानों तथा उनके ग्रथों से मी बढ़ी सहायता मिली है। में उनके परामर्शो ततथा उनके सराहनीय कार्यो से ली गई सुविषाग्रो क लिये उनका आमारो हूँ । प्रवध प्रकाशित रूप में भाषा प्रेमियों के समक्ष था रहा है, इसका भेय हिंदी प्रेमी डॉ० सम्पूर्णानद, प्रकाशक, आन-द पुस्तक भवन, वाराणसी को है | इनके सहयोग के अ्माव म इतने शीघ्र ऐसे शोघप्रबन्ध का जिसका बाजारू मूल्य नहों के बरावर ই प्रकाशित होना নী ভীত हो जाता | में उनका कृत हूँ दर “कार की सावधानी रखने पर मी मुद्रण सम्दधी अनेक अशुद्धियाँ रह गयी हैं। 'शाब्ददोधो के स्थान पर “शब्दबोधो! (परृ० १) वौयत के स्थान पर 'दोघते! (३० १) 'मूदादवो! के स्पान पर भ्वादयों (० २२)




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