अतिक्रान्त | Atikrant

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Atikrant by आशापूर्णा देवी - Ashapoorna Devi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आशापूर्णा देवी - Ashapoorna Devi

Add Infomation AboutAshapoorna Devi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
“मुक इस निन्‍्दा-अपमान की परवाह नही 1 जो.हेगायों उचित मग्रि-दैं/ उनकी करने की स्वाभाविक इच्छा की अपर चुराई*द्वोती है'तो हुआ करे 1 ऐसा हते हैं कहें, उनकी बातों पर ध्यान देना अवलमन्दों का काम नहीं।। मेरी राय में, हने बालों को, मेरी नही, तुम्हारे माँ-बाप की बुराई करनी चाहिये, जिन्‍्होने अपने ई भर स्वां फे लिये मेरे सोलह आने स्वार्थ का गला घोंट दिया है ॥' धह कौन समझे ? कौन समभाये ? तुम्ही बताओ कुन्दलए ? भकिसी की जरूरत नहीं, मैं ही सदको समझा दंगी। बातों से नहों अपने कामों ते समझा दूँगी। यह लोगों ने कैसे समझ लिया कि मैं जीवन भर पति को छोड़, यहाँ ड़ी र.ुगी ? यह अब नहीं हो सकता । जो होना होगा, होगा मगर कल में जाऊँगी ग़हूर | और तुमसे भी कहे देती हैं जी, कल अगर तुम मुझे; अपने साथ लेकर नही भमे, गे अगली घार आकर तुम मुझे यहाँ देस नहीं पाओंगे, यही मेरा निर्णय है 1' सन्तोष का दिल काँप उठता है) सोचता है कि शकुन्ता जितनी संवेदनशील है उतनी ही जिद्दी । पता नहीं सन्तुलन खोकर कया कर बंठे बहू । लेकिन वह भी वेचारा करे तो बया ? विल्टू भी ऐसा विचित्र है ! परिवेश को हल्का करने का एक ओर प्रयाध्ध कर सनन्‍्तोप उठते हुये कहता है, 'वेकार की बातें मत सोचो । बल्कि गुस्सा यूक कर पुत्र-्वशीकरण की साधना में लग पड़ी | मैं तद ठक एक चुयकर लगा कर आता है 7 नही ! नहीं !! नही !!! मैं कुछ नहीं करगी ॥ या तो में कल जाऊँगी, नही वो कभी नहीं जाऊँगी | सुन लो कान खोल कर, यही मेरा अन्तिम निर्णय है ।! कहती तो दहो कुन्तला) प्रर यह भी सोचा तुमने कि माँ के आगे तुम्हारा सुभागा प्रस्ताव रखेगा कैसे ?! (तुमसे नही द्वोता तो व सही । जो कहना द्वोगा मैं ही कहूँगी | मुझे इस बात को कहते खरा भी हिचक नहीं होगी 1 “एक बात खूब अच्छी तरह सोच लेना कुन्तता | बढ़ाया कदम पीछे नही हट सकता। सोच लेना पहले कि एक नादाव बालक पर नाराज होकर तुम्हारा यह करना कहाँ तक उचित होगा ।! “बच्चे पर या किसी पर साराज़गी की बात नहीं । यह मेरा स्थिर संकल्प है। हम बार-बार इस भायु के न ही सकेंगे । जीवन बहुमूल्य है। उसे मैं यहाँ इस प्रकार नष्ट नहीं कर सकती । देखते-देखते पाँच साल बीत गये, इस अन्धे कुँयें मे । मुझे जीना है, जीवन का उपभोग करना है। रही लड़के की बात । तो उसका मैं क्या कहाँ ? तुम्हारी माँ को देख-रेख में वह जब तक रहेया तब तक बह मेरी एक से सुनेगा, वश में आने की तो खंर बात ही नही ।! सन्तोप ने सावधान किया, “धीरे बोलो कुन्तला । माँ, झायद ठाकुरद्वारे से लौट माइ । बाबू भी आते ही होंगे! ' जवाब न देकर शकुन्तद्ा उठी | लालटेन की बत्ती बढा कर वह अपने सूटकेस




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now