आजादी के बाद का हिन्दी उपन्यास | Azadi ke baad ka hindi upanyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्वितीय अव्यय परिवेश का सत्य आजादी के बाद के समग्र साहित्य लेखन की मूल ऊर्जा वस्तुत प्तामसिकर परुगको बदली हुई परिस्थितिया है। युग परिवतन की प्रक्रिया जिस तंजी स इस कालखेण्ड मे विकसित हुई उस तेजी से पहले कभी नहीं दिखाई दी । गति, तेजी और परि- वेतने भाज कै जनि परिचित सत्य वनकर सामन आए। आजाद होने के बाद विकास और प्रगति के विपुल कायक्म) के समा रम्भ के लिए पचवर्षीय याजवाना ने विचान, हृषि, शिखा, तकनीक सभी क्षेत्राम चहुमु्री विकास के कायकरम प्रस्तुत किए । सिंचाई वी परियोजनाआ के तहत बाघ, नहूर, विद्युत खांद के भति सजगता शुरू हुईं | उद्योग धधघा न तेजी से विकास पाया । क्ल-का रखानो के लिए इस्पात, सीमट, कोयला सभी क्षेत्रा म विस्तार हुआ | सडका म॑ सुदूर पदशों को जोढने का उपक्रम का समारम्भ हुजा जिते युगा ते अपनी सीमित दुनिया म जीवन जीन वाते सुदूर गावा, श्राकृतिक सम्पदा स भर पूर अचला का बाह्य जेगत से सम्पक हुआ। यातायात एवं सचार के साधनो के विस्तार के प्लस्वरूप दूरियाँ घटकर सिमिट गइ ( जीवन के दर्नादन ढरें मे व्यतिकम आया चहुँ और शहरी- करण की प्रवत्ति पनपी 1 इन सबके का रण आजादी के बाद के भारतीय व्यक्ति वे जीवन कम में, उसके परिवेश मं बदलाद आया अयच उसकी मानसिकता से भी तीब्र गति से रूपान्तरण आया 1 यह बदलाव ही उपयास की कया का बथाथ बनकर उपस्थित हुआ । परिवश का यह परिवतन सामाजिक एव वयवितिकं स्तर पर भिन भिन रूप म सामने आया । नूतन सामाजिव सत्य गुलाम भारत के व्यक्ति वी मानसिकता को उदबुद्ध बरने वाला सामाजिक सत्य सवय आजादी वा भाव ही था । गुलामी, परतव्रता एवं तज्जाय विवशता वे यायक समाप्त हौ जानं पर अव समाज मे एतद्दिषयक सामूहिक भनक और भय का भाव समाप्त हो गया । पराधीनता कर समाप्त हो जान मे स्वाधीन चितन




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