मुख वस्त्रिका की प्राचीनता सिद्धि | Mukh Vastrika Ki Prachinta Siddhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मु वत्तिका की क्रमिक प्राचीनता सिद्धि। (५) १ = मय 24838 2 और बन आर मद मीय तक,४२० यप हो जाते ६।इस वर्ष-गणुना से यद्द स्पष्टतः ঘাল दो जाता है, ,कि मूर्ति-पूजक समाज से, सुख पर मुंदद पत्ति बांधने घाले श्वेताम्वर जन साधुओं का समाज प्राचीन+ त्तरह 1 ५ ह १ ऊपर बर्शन की हुई मर्दुम-शुमारी की रिपोर्ट के पृष्ट २५४ पर २२ सम्प्रदायों फी उत्पात्ति पुन १५४५ विक्म-सेयत्‌ में बताई गई हैं ! जिस को आज संवत्‌ श्श८७ विक्रमीय तक ४४२ धप द्वाते हैं। अथात्‌ पाठक, उपयुक्त कथन के अनुसार, संघगी साधुओं के सम्प्रदाय को,संवत्‌ १५ ४५ विक्रम में भी निकलना आन लें, तो भी बद्द ऊपर के श्रन्यान्य प्रमाणों से, थमणोपासफ़, समाज की उत्पात्ति काल से तो अवाचीन दी उदरता दे । ऐसे और भी फई प्रमाण दिये जा सकते हैं। शरीर, धमणो- पासक समाज की सूत्ति-पूजक समाज से दर प्रकार धाची- नता लिद्ध की जा सकती दे | थांगे, प्राठक लोग “छुमति-निवेदन” नामक पुस्तक फे पथम प्रष्ठ केः उद्धरण का भी जरा अवलोफन करें । वद যাই -* श्लोका लेखक ने पमरे श इकतीसरो शाल मे,........ मत चलाया, इत्यादि । ৮ इस प्रमाण से भी श्रमणोवासक समाज को प्रचलित हए श्राज ( संघत्‌ १६८७ विक्रमीय तक ) ४४५६ चर्ष हुप । इसी तरह, खरतर भच्छ की जो दस्त-लिखित प्राचीन पद्ाचलि प्राप्त देती है, उस में भी नाँचे लिखे अमुसार प्रमाण उपलब्ध हाता हद | चद्द या ই “अशष्ाधिक पंच दुश शत ( १५०८ ) चर्ष जिन-प्रतिमो स्थापन पर्‌ लुका प मतं प्रवृत्तमू। इत्यादि /




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