भारती की ललित रचनाएं | Bharti Ki Lalit Rachnayein
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पेरियस्वामि तूरन - periyswami tooran
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संक्षिप्त जीवनी पंद्रह
मे काम करने लगे । इस समय तक भारती की सहत काफी गिर चुकी धी । व दुर्बल
हो गये थे और बिल्कुल अजनबी व्यक्ति दिखायी देते थे । ह
15 नवंबर, 1920 ई. स 'स्वेदशमित्रन' में बहुधा हर दिन, 'रसतिरष्ट' विनोद तिष्ट
(टिप्पणियां' आदि स्तंभों में भारती लेखादि लिखने लगे । ये लेख ज्यादातर उदात्त विचारों
से युक्त थ तथा आजादी की चेतना व जागरण को पाठकों क॑ मन में भरने वाले थे ।
उस समय भारती तिरुवल्लिखेणी में रहते थे । वे अक्सर पार्थसारथी क मदिर जाया
करते थे और मंदिर क हाथी को बड़े प्रम से फल और नारियल खिलाते । एक दिन
उन्मत्त दशा पें उस हाथी ने उनको पटक दिया । भारती क॑ सिर और शरीर पर सख्त चोटें
आयीं |
कुछ दिनों पें घाव भर गये, मगर इस घटना के उपगत वे अधिक दिन जिंदा न रहे ।
उनका स्वास्थ्य गिरता गया । ।। सितंबर, 1५21 ई. को उनका देहांत हो गया । युगद्रष्टा
कवि भारती जिन्होंने अपनी प्रतिभाशानी लखनी व अप्रितम कवित्वशक्ति द्वाश तमिल भाषा
में नयी चेतना एवं जागरण भर दिया था $# वर्ष की आयु में ही चल बसे । हृदय में सुलगती
उदात्त भावना की ज्वाला को, भावावेश को उनका शिधिल शरीर मंभालने में असमर्थ रहा ।
भारती को मृत्यु के उपरोत ही उनकी कविताओं की महत्ता प्रकाश में आयी । उन
दिनों आजादी के लिए लड़ने वालों की हर सभा में उनके राष्ट्रीय गीत गूंज उठे । उनके
देशभक्तिपूर्ण गीतों से जनता अनुप्राणित हो उठी । उनकी गद्य शैली में ऐसी नवीनता थी
जैसे सीधे वातालाप ह्य रहा हा । उनकं उदात्त विचारो में स्पप्टता थी । भारती ने गद्य
क्षत्र म नयी उदृभावनाओं को जन्म दिया ।
नारी-स्वातव्य, समाज-सुधार व राजनीति मं भारती कं विचार कफो प्रगतिशील थ ।
भारती क्रांतिदर्शी थ । उनकी कविता, कहानी, लेख आदि रचनाओं में उनकी राष्ट्रीय भावना
और क्रांति-विचार स्पष्टतया लक्षित हैं । जैसा कि भारती ने कहा है - हृदय में प्रकाश
हा वाणी प प्रकाश लगा - इनक हृदयगत उज्ज्वल आनोकमय प्रकाश से उनको समस्त
रचनाओं को उदभासित होते हम देखते हैं और महाकवि कहकर अपनी अंद्धाजलि अर्पित
करते हैं |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...