भारती की ललित रचनाएं | Bharti Ki Lalit Rachnayein

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bharti Ki Lalit Rachnayein by पेरियस्वामि तूरन - periyswami tooran

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पेरियस्वामि तूरन - periyswami tooran

Add Infomation Aboutperiyswami tooran

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
संक्षिप्त जीवनी पंद्रह मे काम करने लगे । इस समय तक भारती की सहत काफी गिर चुकी धी । व दुर्बल हो गये थे और बिल्कुल अजनबी व्यक्ति दिखायी देते थे । ह 15 नवंबर, 1920 ई. स 'स्वेदशमित्रन' में बहुधा हर दिन, 'रसतिरष्ट' विनोद तिष्ट (टिप्पणियां' आदि स्तंभों में भारती लेखादि लिखने लगे । ये लेख ज्यादातर उदात्त विचारों से युक्त थ तथा आजादी की चेतना व जागरण को पाठकों क॑ मन में भरने वाले थे । उस समय भारती तिरुवल्लिखेणी में रहते थे । वे अक्सर पार्थसारथी क मदिर जाया करते थे और मंदिर क हाथी को बड़े प्रम से फल और नारियल खिलाते । एक दिन उन्मत्त दशा पें उस हाथी ने उनको पटक दिया । भारती क॑ सिर और शरीर पर सख्त चोटें आयीं | कुछ दिनों पें घाव भर गये, मगर इस घटना के उपगत वे अधिक दिन जिंदा न रहे । उनका स्वास्थ्य गिरता गया । ।। सितंबर, 1५21 ई. को उनका देहांत हो गया । युगद्रष्टा कवि भारती जिन्होंने अपनी प्रतिभाशानी लखनी व अप्रितम कवित्वशक्ति द्वाश तमिल भाषा में नयी चेतना एवं जागरण भर दिया था $# वर्ष की आयु में ही चल बसे । हृदय में सुलगती उदात्त भावना की ज्वाला को, भावावेश को उनका शिधिल शरीर मंभालने में असमर्थ रहा । भारती को मृत्यु के उपरोत ही उनकी कविताओं की महत्ता प्रकाश में आयी । उन दिनों आजादी के लिए लड़ने वालों की हर सभा में उनके राष्ट्रीय गीत गूंज उठे । उनके देशभक्तिपूर्ण गीतों से जनता अनुप्राणित हो उठी । उनकी गद्य शैली में ऐसी नवीनता थी जैसे सीधे वातालाप ह्य रहा हा । उनकं उदात्त विचारो में स्पप्टता थी । भारती ने गद्य क्षत्र म नयी उदृभावनाओं को जन्म दिया । नारी-स्वातव्य, समाज-सुधार व राजनीति मं भारती कं विचार कफो प्रगतिशील थ । भारती क्रांतिदर्शी थ । उनकी कविता, कहानी, लेख आदि रचनाओं में उनकी राष्ट्रीय भावना और क्रांति-विचार स्पष्टतया लक्षित हैं । जैसा कि भारती ने कहा है - हृदय में प्रकाश हा वाणी प प्रकाश लगा - इनक हृदयगत उज्ज्वल आनोकमय प्रकाश से उनको समस्त रचनाओं को उदभासित होते हम देखते हैं और महाकवि कहकर अपनी अंद्धाजलि अर्पित करते हैं |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now