कर्त्तव्य-कौमुदी | Kartavya Koumudi
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
628
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सतक्ञाचस्ण॒म ७
सम्पूर्ण जगन् में समान साथ का अनुमव करना, योग की
साभना पर इसी तरद परम थोगी पद की प्राप्ति करना, चतुर्थ
अवस्था फे मुख्य कत्तेत्य है । तीमरी अवस्धा में अंशतः फत्तेब्य
पालन कर धीरधोरे 'घागे कूच करना चाहिए अर्थात् स्थूल पापो का
আহ फरना याहिये জিলল কাম अद्रते-यदते विपय, फपाय का
सर्वथा स्याग किया जा सऊ। देश और समाज कौ सेवा फरना
चाहिये जिनसे दृ की विशालता बढ़े, और इस तरह
से समग्र जगत शिवा दिश्य के ऊपर कुहुस्थ भाव जागृत
টা] प्रथफ पथफ प्रन निद्रम हृत्यादि प्रडण करना चाहिये
जिममे शआ्रागे बढ़ने हुए संवभादि भारण करके योग्य साधना फे
मार्ग पर सग्लता से चल सके । तीसरी 'प्रोर चतुथ अवत्या का
यह तारतम्य है और यही इस अन्ध के दोनों सरहों फा उपक्रम
तथा उपसंदार है ॥ ३॥
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