ब्राहमण गीता | Brahman Geeta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द्वितोय अध्याय ] त्राह्यशगीता { १३
~~
৬৬.
किस प्रकार जीव अपने झुभ ओर হুম কমা ক্গা
करता है और जब यह जीवन्मुक्त होता है त्व कर्म ऋ
रहने है 1४
एवं संचोदितः सिद्ध ¦ प्रश्नांस्तान्प्रत्यभापत |
आलनुपृच्येण चापणेय तन््मे निगदतः शुण ॥५॥
इस प्रकार प्रश्न करने पर इस লিল ন जो-उत्तर दिया
उसको दे छख तुम यथावन् सुनो 1५1
सिद्ध उवाच--
घ्यायुःकीर्निंकराणीह यानि कृत्यानि सेवते ।
शरीरप्रहणे यस्मिस्तेु चीणेषु सवशः 151
आयुःत्तथपरीतास्मा विपरीतानि सेचते ।
उद्धिच्यवतेते चास्य विनाग्े प्रत्युपस्थिते ॥७॥
सिद्ध घोला, आयु और कोर्ति के बढ़ाने वाले जिन कर्मों को
शरीर प्रहण करने पर जीवात्मा करता है उनके नष्ट हो जनि पर,
क्षीण आयु द्ाकर जीवात्मा उलटे कम करने लगता है और
ब्रिनाश काल आने पर इसकी बुद्धि उल्नटी हो जाती है ॥६--»॥
' सत्त्वं बल॑ च काल च विदित्वा चात्मनस्तथा।
अतिवेलमुपाश्नाति स्वविरुद्धान्यनास्मचान् ॥८॥
तब अपनी बुद्धि, चल, और समय को जानता हुआ भी
असमझय और अपनी प्रकृति के विरुद्ध मोज़न करता है और ऐसा
प्रतीव होवा है फर इस अपना कुछ ज्ञान नहीं है ॥८॥
ग
टा
ज
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