हरिवल मच्छी | Harival Macchi

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Harival Macchi by काशीनाध जैन - Kashinadh Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अ्हिंसाके पालनसे भाग्योदय | ই खीन्दूर्यका र्साखादन कर रदी थी । उसी समय उस आरोक नीचेसे दरिवल नामक एक परमदुन्दर वणिकयुत्र जा निका । डसे दैश्वतेही राज़कन्या उसपर मोहित हो गयी और मनमें कहने लगी; कि यदि यह पुरुष मेरा पति हो तो मेरे दिन बड़े चैनसे कट सकते हैं। यद विचार कर राजकन्याने उस चणिकपुत्रका परिचय प्राप्त करनेके लिये एक पत्र लिखकर उसके खामने फेंक दिया | वणिकपुत्रकों दृष्टि भी उस ऋरोखेमें वेठी हुई उस चन्द्र- सुखीकी ओर आकपि ते हो चुकी थी | पत्र मिलतेही वणिकपुत्रने फिर भरोखेकी ओर देखा । इसवार दोनोंकी चार आँखें हुई'। होनेके साथदी दोनों एक दूसरेपर तनमनसे मुग्ध হী गये । वणिकपुत्रने देखा कि राजकन्या क्या है, मानो साक्षात्‌ रति है। चणिकपुत्र भी साक्षात्‌ इन्द्र किंवा कामदैवके समान रुूपवान था। ऐसी अवयामें भा यह कब हो सकता था, कि ` क्रिसीके मनमें विकार न उत्पन्न हो । कहनेका तात्पर्य यह है “ कि दोनों एक दूसरे पर अनुरक्त हो गये। इसके वाद्‌ एक सल्ली दारा राजकन्याने उस धणिकपुत्रका परिचय धाप्त कर ` ` लिया । राजकन्यनि यद भी कला दिया कि मै अमावस्यक्ि ` दिन रातजिके समय नगरके बाहर जो देवीका मन्दिर है, वहाँ दर्शनके बहाने आऊँगी, और चदींसे हमछोग, इल नगरकों अन्तिम नमस्कार कर कहीं ऐसे श्यानको चरेगे, जदा निश्चिन्त झपसे सानन्द्‌ जीवन व्यतीत कर सकेगे। ` ' चणिकपुत्र भरी राज्कन्याके मोहमें पड़ चुका था, अतः राज- २




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