मूल्यवानमोती | Moolyawan Moti
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ )
दस रंक पुत्री का कहा मानो | में मस्तक नमाकर
कहती हूं कि मानें। ! पिताजी जरा मानों ३] गरीब
गाय का कहन मानों !!! जरा ते! दया लाझी
आपके दुष्ट विचारों को जरा शिक्षा दो )। हाथ !
पिठा जी लए्वए हूं |. पुत्री पर किडिचत क्रोध
मत करना 1 लि० मैं आपकी आभारी !
दुखित !! दीव पुत्री !!!
मोती गौरी? का सविनय नमन,
¢ नगीनलाल् » समाचार पत पठने के पश्यात्
सिगरेट खुलगा आराम कुर्सी पर आराम छेने के
लिये आड़ा पड़ा, हमेशा अलुसार अधिक समयहोी
ज्ञाने से निद्रा देवी फे अनुचर एक के ऊपर एक
झाकर'“''***“**“****“खंताने लगे इससे उनके
हुक्म को श्ाद्र दे “नगीनलाॐ कपड़े उतार दी
यर रट, पक धुता हुश्च पञ्ज्वा पदिन सिगरेट पी
सख शय्या परसो गया” तत्पश्चात् “ मोतीगौसे ”
के पत्र का विचार फरता. हुआ निद्रा देवी फे
आज्वीन होगया।
॥ = कः
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