सदुपदेश - संग्रह | Sadupadesh - Sangrah

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Sadupadesh - Sangrah by राजदेव त्रिपाठी - Rajdev Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९३ सदपदेश संग्रहः परन्त जिनका कोई नहीं जानता, अथवा जिसको निष्फल जीवन समभ कर्‌ लोग जिनसे धृणा करते रै ओर नाक भौं सिफोाडते है उनसे से हमें ऐसे पुरुष मिल सकते हैं जो वास्तव में सफल जीवन रै । कि @ कि जगत के कुछ भी दिखाने की भावना न रखकर हृदय की शुद्ध बनाओ । बुरी वासना ओर हुगंणों का हृदय से निकाल कर उसे देवी गुणों ओर भगवत प्रेम से थर दो | चेष्टा करो भगवान की शक्ति से कुछ भी कठिन नहीं है, विश्वास करो, तुम्हें अवश्य संफलता होगी । छः षि एक कोने में वेठकर मनमाने सुख का साधन पढ़ने पे मिलता है, णी चाहे ते वाल्मीकि के तपोवन में चिचरण कीजिये, जी चाहे ते हल्दी घाटी में प्रताप के प्रताप का उत्कप देखिये, चाहे सूर के पर्दों पर লহ बनकर मेटराते रहिये, चाहे तलसी के मानस सर में इबकी लगाइये, चाहे व्यास के अति विक्रम का ध्यान कीजिये, चाहे काव्य लोक का आनन्द लूटिये। चाहे बेद ओर उपनिपदों का मनन कीजिये, चाहे गीता के गौरव में गोते लगाइये, चाहे शेक्सपियर की मानव प्रकृतिका विषेचन कीजिये, चाहे मिल्टन की ज्ञान गरिमा




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